आज हम लोग जानेंगे कि चिंतन किसे कहते हैं? Chintan kya hai? चिंतन की प्रक्रिया कब आरंभ होती है तथा चिंतन कितने प्रकार से किया जाता है, तो चलिए हम लोग जानते हैं कि चिंतन क्या है?
चिंतन किसे कहते हैं?
चिंतन एक प्रकार का ऐसी प्रक्रिया या गतिविधि होती है जो मानव के मस्तिष्क में हमेशा क्रियाशील रहती है। मानव मस्तिष्क में चिंतन की प्रक्रिया कभी भी स्थिर नहीं रहती है मानव का मस्तिष्क हमेशा कुछ ना कुछ सोचते रहता है।
चिंतन कब आरंभ होती है?
जब मनुष्य किसी समस्याओं से घिरा होता है तब वह इस समस्याओं का हल निकालने के लिए अनेकों प्रकार का चिंतन प्रारंभ करता है अर्थात हम कह सकते हैं कि जब मनुष्य या व्यक्ति किसी समस्या से घिरा होता है तब चिंतन की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।
चिंतन के प्रकार
सृजनात्मक चिंतन
सृजनात्मक चिंतन चिंतन की एक नवीन तकनीक है।सृजनात्मक चिंतन बालकों में किसी विषय, तथ्य, घटना इत्यादि के बारे में सोचने का नवीन दृष्टिकोण विकसित करता है।
सृजनात्मक चिंतन खोज, अविष्कार, मौलिकता को जन्म देती है, इसे अपसारी चिंतन भी कहा जाता है।
अभिसारी चिंतन (Convergent Thinking)
अभिसारी चिंतन एक बिंदु पर केंद्रित होता है। इस प्रकार के चिंतन में कल्पना करने की आवश्यकता नहीं होती है।यह बुद्धि को बढ़ावा नहीं देती है। अभिसारी चिंतन पर तथ्यों आधारित होती है। अभिसारी चिंतन से किसी समस्या के हल निकालने पर केवल और केवल एक निकलता है। जब कोई बालक पहले से बने नियम और तथ्यों के आधार पर किसी समस्या का हल निकालता है तो उसके द्वारा किया गया चिंतन अभिसारी चिंतन (Convergent Thinking) कहलाता है।
अपसारी चिंतन (Divergent Thinking)
अपसारी चिंतन को सृजनात्मक चिंतन भी कहा जाता है। अपसारी चिंतन या सृजनात्मक चिंतन खोज, अविष्कार तथा मौलिकता को जन्म देती है।
जब किसी व्यक्ति के सामने कोई समस्या रखी जाती है तो वह व्यक्ति उस समस्या के समाधान के लिए अपने कल्पना शक्ति का प्रयोग करता है तथा उस समस्या का एक से अधिक हल प्रस्तुत करता है। इस प्रकार के चिंतन को अपसारी चिंतन या सृजनात्मक चिंतन (Divergent Thinking) करते हैं।
अपसारी चिंतन out-of-the-box चिंतन पर आधारित है out-of-the-box चिंतन का मतलब होता है कि सामान्य सोच से अलग सोच पैदा कर किसी चीज के बारे में सूचना।
मूर्त चिंतन
मूर्त चिंतन, चिंतन की प्रक्रिया का सबसे निम्न रूप है। मूर्त चिंतन प्रत्यक्ष वस्तु के बारे में चिंतन है। अर्थात जब कोई वस्तु सामने में उपस्थित हो तो उसको देखकर या छूकर उसके बारे में बताया जाए तो इस प्रकार के चिंतन को मूर्त चिंतन कहते हैं। मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि मूर्त चिंतन छोटे बच्चों, पशु पक्षियों द्वारा किया जाता है।
अमूर्त चिंतन
अमूर्त चिंतन ज्ञान पर आधारित चिंतन होता है। अमूर्त चिंतन के लिए किसी वस्तु का प्रत्यक्ष रूप से सामने होना जरूरी नहीं है। इस प्रकार के चिंतन के लिए बालक अपनी बुद्धि एवं कल्पना शक्ति का उपयोग करता है। जब कोई वस्तु या समस्या प्रत्यक्ष रूप से सामने नहीं हो फिर भी उसके बारे में चिंतन करना अमूर्त चिंतन कहलाता है।
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