पाठ्यक्रम(Syllabus) क्या है पाठ्यक्रम का परिभाषा, उद्देश्य, अर्थ, उपयोगिता एवं महत्व क्या है? 

यहाँ हमलोग जानेंगे कि पाठ्यक्रम(Syllabus) क्या है? पाठ्यक्रम(Syllabus) का शाब्दिक अर्थ क्या है तथा पाठ्यक्रम की उपियोगिता एवं महत्व क्या है? तो चलिए बहुत ही आसान एवं सरल शब्दों में पाठ्यक्रम(Syllabus)) के बारे में जानने की कोशिश करते हैं –

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पाठ्यक्रम का शाब्दिक अर्थ :-

पाठ्यक्रम दो शब्दों से मिलकर बना है “पाठ्य” और “क्रम” जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि “पाठ का क्रम” अर्थात किसी कक्षा के लिए सभी विषयों, उपविषय (टॉपिक) तथा उससे संबंधित शिक्षण सामग्री का सुव्यवस्थित ढंग से प्रस्तुतीकरणपाठ्यक्रम” कहलाता है

  • पाठ्यक्रम का निर्माण शिक्षा परिषद (बोर्ड) द्वारा निर्धारित किया जाता है पाठ्यक्रम का निर्माण एक अनुभवी अध्यापक भी कर सकते हैं जो उस विषय के बारे में पूर्ण जानकारी रखते हैं

पाठ्यक्रम की परिभाषा

पाठ्यक्रम अध्यापक रूपी कलाकार के हाथ में वह साधन है जिसके माध्यम से वह अपने पदार्थ रूपी छात्र को अपने कला गिरी रूपी स्कूल में अपने उद्देश्य के अनुसार विकसित करते हैं। इस परिभाषा का प्रतिपादन कनिंघम महोदय ने की है।

कैसवैल के अनुसार :- बालको तथा उनके माता-पिता तथा शिक्षकों के जीवन में आने वाली सभी क्रियाओं को पाठ्यक्रम कहा जाता है। शिक्षार्थी के कार्य करने के समय जो भी कुछ कार्य होता है वह सबसे पाठ्यक्रम का निर्माण होता है।

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रडयार्ड एवं हेनरी के अनुसार :- विस्तृत अर्थ में पाठ्यक्रम के अंतर्गत समस्त विद्यालय का वातावरण आता है जिसमें विद्यालय में प्राप्त सभी तरह के संपर्क, पठन, क्रियाएं तथा विषय शामिल है।

ब्रूवेकर के अनुसार :-पाठ्यक्रम हुआ है ऐसा करम है जो किसी व्यक्ति को गंतव्य स्थान पर पहुंचाने हेतु तय करना पड़ता है।

ड्यूवी के अनुसार:- पाठ्यक्रम सिर्फ अध्ययन की योजना अथवा विषय सूची ही नहीं, परंतु कार्य तथा अनुभव की श्रृंखला है।पाठ्यक्रम समाज में कलात्मक ढंग से परस्पर रहने हेतु बच्चों के प्रशिक्षण एवं शिक्षकों के पास एक साधन है।

संक्षेप में कहा जाए तो पाठ्यक्रम सुनिश्चित जीवन का दर्पण है जो विद्यालय में पेश किया जाता है।

पाठ्यक्रम(Syllabus)का उद्देश्य :-

पाठ्यक्रम यह बताता है कि – शिक्षक को क्या पढ़ाना है? पाठ्यक्रम को पढ़ाने का उद्देश्य क्या है? तथा उस पाठ को पढ़ाने के फलस्वरुप बालक के कक्षा के अंदर तथा बाहरी जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है?

पाठ्यक्रम का शिक्षण व्यवस्था के संचालन और शैक्षिक उद्देश्यों की पूर्ति में महत्वपूर्ण स्थान है। इसकी आवश्यकता इन्हीं उद्देश्यों को पूरा करने के लिए होती है। अच्छे कर्म शिक्षा दर्शन पर आधारित होता है। शिक्षा प्रदान करने के कार्य को संपन्न करने में सर्वाधिक महत्व पाठ्यक्रम का है। यदि पाठ्यक्रम का निर्माण उचित ढंग से होता है तो विद्यालय और शिक्षक शिक्षा के उद्देश्यों की पूर्ति करने में सफल होते हैं, और यदि ऐसा नहीं होता है तो फिर कई समस्याएं बनी रहती है। विघ्न ने इस संबंध में ठीक ही कहा है कि-” शिक्षा में आधारभूत समस्या पाठ्यक्रम की है” और यदि इस समस्या को हल कर लिया जाए तो अन्य समस्याएं स्वत: हल हो जाएगी। इस प्रकार से पाठ्यक्रम की आवश्यकता शिक्षा के उद्देश्य को पूरा करने के लिए काफी महत्वपूर्ण है।

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पाठ्यक्रम के महत्व एवं आवश्यकता :-

  • (Syllabus) पाठ्यक्रम द्वारा शिक्षण और उससे संबंधित सभी कार्य सुनिश्चित एवं पूर्व निर्धारित हो जाते हैं।
  • पाठ्यक्रम के अभाव में शिक्षा के आदि उचित प्रकार से नहीं चल सकती है। पाठ्यक्रम की सहायता से शिक्षक प्रमुख  विषयों में भी भेद करके आवश्यकतानुसार बोल दे सकता है।
  • अच्छे कर्म शिक्षकों के कार्य में एकरूपता तथा समानता लाने में सहयोग देता है।
  • छात्रों के लिए पाठ्यक्रम का महत्व दो प्रकार का होता है। प्रथम-  पाठ्यक्रम के द्वारा यह ज्ञात कर लेते हैं कि उन्हें कितनी विषय वस्तु पढ़ना है तथा कितने समय के अंदर पढ़ना है। दूसरा-पाठ्यक्रम से इस बात का पता चल जाता है कि उन्हें परीक्षा में विभिन्न विषयों में क्या तैयारी करनी है।
  • शिक्षक को भी पाठ्यक्रम के आधार पर परीक्षा प्रश्न पत्र का निर्माण करने तथा छात्रों का मूल्यांकन करने में सुविधा होती है।
  • पाठ्यक्रम द्वारा विभिन्न विद्यालयों में एक स्तर बनाए रखने तथा एकरूपता स्थापित करने में आसानी होती है।
  • अच्छे कर्म के अनुसार शिक्षण कार्य करने में एक कर्म बना रहता है। इससे समय की बचत होती है तथा अध्ययन कार्य भली-भांति किया जा सकता है।
  • माता- पिता, अभिभावक तथा शिक्षक को भी अपने बच्चों की प्रजाति का इसके माध्यम से ज्ञान प्राप्त करने में सुविधा होती है।
  • पाठ्यक्रम से शिक्षक का कार्य सरल हो जाता है। उन्हें ज्ञात हो जाता है कि छात्रों को क्या पढ़ाना है। तथा कितने समय में पढ़ाना है और किन किन उद्देश्यों की पूर्ति हेतु प्रयत्न करना है।
  • पाठ्यक्रम द्वारा ही छात्र अपने पूर्वजों, समाज व राष्ट्र के अनुभव का ज्ञान प्राप्त कर सकते हैं। इस प्रकार से पाठ्यक्रम का सांस्कृतिक मूल्य भी है।

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