विकास किसे कहते हैं? विकास की परिभाषा क्या है? विकास की अवधारणा, आयाम एवं विकास के अभिलक्षण क्या है?
विकास किसे कहते हैं?
मनुष्य के विकास जीवन प्रयत्न चलने वाली एक निरंतर प्रक्रिया होती है। विकास की प्रक्रिया में बालकों का सर्वांगीण पक्षों का विकास होता है। विकास की प्रक्रिया में बालक का शारीरिक विकास, सामाजिक विकास, संज्ञानात्मक विकास, क्रियात्मक विकास, संवेगात्मक विकास एवं भाषागत विकास इत्यादि पक्षों का विकास होता है।
विकास की परिभाषा क्या है?
बालक में क्रमबद्ध रूप से होने वाले सुसंगत परिवर्तन की क्रमिक श्रृंखला को “विकास” कहा जाता है।
अरस्तु के अनुसार – विकास, आंतरिक एवं बाह्य कारणों से व्यक्ति में परिवर्तन है।
विकास के अभिलक्षण क्या है?
- विकास जीवन प्रयत्न चलने वाली प्रक्रिया है, जो गर्भधारण से लेकर मृत्युपर्यन्त चलती रहती है।
- विकासात्मक परिवर्तन हमेशा एक क्रम के अनुसार होता है जैसे-विकास सामान्य से विशिष्ट की ओर, सरल से जटिल की ओर चलती है।
- विकास बहुआयामी होता है। अर्थात कुछ क्षेत्रों में यह बहुत तेज गति से वृद्धि को दर्शाता है तथा कुछ क्षेत्र में धीमी गति से वृद्धि को दर्शाता है।
- विकास का क्रम बहुत ही लचीला होता है।
विकासात्मक परिवर्तन मात्रात्मक हो सकता है जैसे आयु के साथ कद का बढ़ना अथवा गुणात्मक जैसे नैतिक मूल्यों का निर्माण होना। - विकास की प्रक्रिया प्रासंगिक हो सकता है। विकास ऐतिहासिक, परिवेश और सामाजिक संस्कृति घटकों से प्रभावित होता है।
विकास किसे कहते हैं? विकास की अवधारणा, आयाम एवं अभिलक्षण क्या है?
विकास के आयाम कौन-कौन से हैं?
शारीरिक विकास
शारीरिक विकास किसी भी बालक का बाय परिवर्तन होता है। शारीरिक विकास के अंतर्गत होने वाले परिवर्तन बाहर से स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं जैसे ऊंचाई का बढ़ना, शारीरिक अनुपात में वृद्धि इत्यादि जीने हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं।
मानसिक विकास
मानसिक विकास को संज्ञानात्मक विकास भी कहते हैं। मानसिक विकास का अर्थ बालक के उन सभी मानसिक योग्यता एवं क्षमताओं का विकास से है जिनके परिणाम स्वरूप बालक विभिन्न प्रकार के समस्याओं को सुलझाने में अपनी मानसिक शक्तियों का उपयोग कर पाता है।
सांवेगिक विकास
संवेग को भाव भी कहा जाता है। संवेग का अर्थ ऐसी अवस्था से होता है जो व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करता है। भय, क्रोध, घृणा, आश्चर्य, स्नेह, खुशी इत्यादि संवेग के उदाहरण है।
संवेगात्मक विकास मानव वृद्धि एवं विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है। बालक का संवेगात्मक व्यवहार उसकी शारीरिक वृद्धि एवं विकास को ही नहीं बल्कि बौद्धिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास को भी प्रभावित करती है।
विकास किसे कहते हैं? विकास की अवधारणा, आयाम एवं अभिलक्षण क्या है?
क्रियात्मक विकास
क्रियात्मक विकास का अर्थ किसी व्यक्ति या बालक के कार्य करने की शक्तियों, क्षमताओ या योग्यताओं के विकास से है।
- क्रियात्मक क्रियात्मक शक्तियों, क्षमता हो या योग्यताओं का अर्थ होता है कि – ऐसी शारीरिक गतिविधियां जिनके संपन्न करने के लिए मानसिक एवं तंत्रिकाओं की गतिविधियों के संयोजन की आवश्यकता होती है। जैसे – चलना, बैठना, इत्यादि।
विकास किसे कहते हैं? विकास की अवधारणा, आयाम एवं अभिलक्षण क्या है?
भाषायी विकास
भाषा के विकास को एक प्रकार से संज्ञानात्मक, भावनात्मक विकास माना जाता है।
- Language (भाषा) के माध्यम से बालक अपने मन के भावों, विचारों को एक दूसरे के सामने रखता है एवं दूसरे के भाव, विचारों एवं भावनाओं को समझता है।
- भाषा विकास के अंतर्गत बोलकर, संकेत के माध्यम से अपने विचारों को प्रकट किया जाता है।
सामाजिक विकास
समाज के अंतर्गत रहकर भी विंडपावर लोगों को सीखना ही सामाजिक विकास का अर्थ है। समाज के अंतर्गत बालक चरित्र निर्माण, अच्छा व्यवहार, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा सामुदायिक विकास, भाईचारा इत्यादि विकास को सीखता है।
संज्ञानात्मक विकास
इसका संबंध वातावरण को समझने उससे संबंधित चुनौती व समस्याओं को हल करने के लिए तर्कपूर्ण एवं अमूर्त ढंग से सोचने की क्षमता से है जो वातावरण के साथ होते अनुकूलित होने में मदद करती है।
नैतिक विकास
नैतिक विकास का अर्थ सामाजिक सांस्कृतिक और कानूनी रूप से सही और गलत के विश्लेषण करने की क्षमता के विकास से है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उसके सोच व्यवहार एवं भावना के प्रकटीकरण पर पड़ता है।
व्यक्ति एक नैतिक परिस्थितियों में किस प्रकार व्यवहार करता है उसके नैतिक विकास के स्तर पर निर्भर करता है।