आज की लेख में आप बाल विकास के आयाम के बारे में अध्ययन करेंगे। इस लेख के अंतर्गत आप बाल विकास के आयाम कौन- कौन से हैं इसके बारे में जानेंगे। 

बाल विकास के आयाम कौन-कौन से हैं?

शारीरिक विकास

शारीरिक विकास किसी भी बालक का बाह्य परिवर्तन होता है। शारीरिक विकास के अंतर्गत होने वाले परिवर्तन बाहर से स्पष्ट रूप से दिखाई देते हैं जैसे ऊंचाई का बढ़ना, शारीरिक अनुपात में वृद्धि इत्यादि जीने हम स्पष्ट रूप से देख सकते हैं

मानसिक विकास

मानसिक विकास को संज्ञानात्मक विकास भी कहते हैं। मानसिक विकास का अर्थ बालक के उन सभी मानसिक योग्यता एवं क्षमताओं का विकास से है जिनके परिणाम स्वरूप बालक विभिन्न प्रकार के समस्याओं को सुलझाने में अपनी मानसिक शक्तियों का उपयोग कर पाता है

सांवेगिक विकास

संवेग को भाव भी कहा जाता है। संवेग का अर्थ ऐसी अवस्था से होता है जो व्यक्ति के व्यवहार को प्रभावित करता है। भय, क्रोध, घृणा, आश्चर्य, स्नेह, खुशी इत्यादि संवेग के उदाहरण है

​संवेगात्मक विकास मानव वृद्धि एवं विकास का एक महत्वपूर्ण पहलू है। बालक का संवेगात्मक व्यवहार उसकी शारीरिक वृद्धि एवं विकास को ही नहीं बल्कि बौद्धिक, सामाजिक एवं आर्थिक विकास को भी प्रभावित करती है

विकास किसे कहते हैं? विकास की अवधारणा, आयाम एवं अभिलक्षण क्या है?

क्रियात्मक विकास

क्रियात्मक विकास का अर्थ किसी व्यक्ति या बालक के कार्य करने की शक्तियों, क्षमताओ या योग्यताओं के विकास से है

  • ​क्रियात्मक क्रियात्मक शक्तियों, क्षमता हो या योग्यताओं का अर्थ होता है कि – ऐसी शारीरिक गतिविधियां जिनके संपन्न करने के लिए मानसिक एवं तंत्रिकाओं की गतिविधियों के संयोजन की आवश्यकता होती है। जैसे – चलना, बैठना, इत्यादि

विकास किसे कहते हैं? विकास की अवधारणा, आयाम एवं अभिलक्षण क्या है?

भाषायी विकास

भाषा के विकास को एक प्रकार से संज्ञानात्मक, भावनात्मक विकास माना जाता है।

  • Language (भाषा) के माध्यम से बालक अपने मन के भावों, विचारों को एक दूसरे के सामने रखता है एवं दूसरे के भाव, विचारों एवं भावनाओं को समझता है।
  • भाषा विकास के अंतर्गत बोलकर, संकेत के माध्यम से अपने विचारों को प्रकट किया जाता है।

सामाजिक विकास

समाज के अंतर्गत रहकर सामाजिक गुणों को सीखना ही सामाजिक विकास का अर्थ है। समाज के अंतर्गत बालक चरित्र निर्माण, अच्छा व्यवहार, सांस्कृतिक, धार्मिक तथा सामुदायिक विकास, भाईचारा इत्यादि विकास को सीखता है।

संज्ञानात्मक विकास

इसका संबंध वातावरण को समझने उससे संबंधित चुनौती व समस्याओं को हल करने के लिए तर्कपूर्ण एवं अमूर्त ढंग से सोचने की क्षमता से है जो वातावरण के साथ होते अनुकूलित होने में मदद करती है।

नैतिक विकास

नैतिक विकास का अर्थ सामाजिक सांस्कृतिक और कानूनी रूप से सही और गलत के विश्लेषण करने की क्षमता के विकास से है जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव उसके सोच व्यवहार एवं भावना के प्रकटीकरण पर पड़ता है।

व्यक्ति एक नैतिक परिस्थितियों में किस प्रकार व्यवहार करता है उसके नैतिक विकास के स्तर पर निर्भर करता है।

मैं उम्मीद करता हूं कि यह लेख आपको पसंद आई होगी तथा यह आपके लिए उपयोगी भी होगा। इसी तरह के अन्य लेख को पढ़ने के लिए पढ़ते रहिए…..RKRSTUDY.NET

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