आज के इस लेख में आप सभी लोग “बाल विकास की अवस्था” के बारे में अध्ययन करेंगे। बच्चों के विकास के विभिन्न अवस्थाएं होते हैं तथा सभी अवस्थाओं में अलग-अलग परिवर्तन देखने को मिलता है। इस लेख के अंतर्गत आप उन सभी अवस्था एवं उन में होने वाले परिवर्तन के बारे में अध्ययन करेंगे तो चलिए जानते हैं कि बाल विकास की अवस्थाएं कौन-कौन से हैं?
बाल विकास की अवस्था
बालक के विकास के कई अलग-अलग अवस्थाएं होते हैं। प्रत्येक अवस्था का व्यवस्था के साथ एक व्यापक संबंध भी होता है। फिर भी प्रत्येक अवस्था की अपनी अलग विशिष्ट आवश्यकता है और अपेक्षाएं होती है।
मनोवैज्ञानिकों ने मानव के विकास का मुख्य चार अवस्थाएं में बांटा है।
यह अवस्थाएं कुछ इस प्रकार से हैं…. शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था और प्रौढावस्था।
तो चलिए अब सभी अवस्थाओं को बारी-बारी से पढ़ते हैं उसकी विशेषता को जानने का प्रयास करते हैं।
शैशवावस्था
- शैशवावस्था जन्म से 2 वर्ष तक रहता है।
- इस अवस्था में गति के विकास अत्यधिक मात्रा में होता है।
- बुद्धि का भी इस अवस्था में तेजी से विकास होता है।
- शैशवावस्था को गतिविधियों के प्रारंभ होने की अवस्था कहा जाता है।
- बच्चों में बैठना उठना किसी वस्तु को हाथ से पकड़ ना बोलना शारीरिक क्रियाओं में तालमेल बैठाने की क्षमता इत्यादि का विकास इसी अवस्था में प्रारंभ हो जाता है।
बाल्यावस्था
यह अवस्था 2 से 12 वर्ष तक की बीच की अवस्था होती है।
बाल्यावस्था को दो भागों में बांटा गया है यह है – पूर्व बाल्यावस्था और उत्तर बाल्यावस्था।
पूर्व बाल्यावस्था
- पूर्व बाल्यावस्था 2 से 6 वर्ष तक की अवस्था होती है।
- इस अवस्था में शैशवावस्था की अपेक्षा बालक में वृद्धि की दर धीमी वस्त्र हो जाती है।
- पूर्व बाल्यावस्था में भाषाई विकास तीव्र गति से होता है।
- इस अवस्था में कल्पना शक्ति का भी विकास होने लगता है।
- पूर्व बाल्यावस्था में बालक अकेले खेलना पसंद करता है।
उत्तर बाल्यावस्था
- उत्तर बाल्यावस्था का उम्र 6 से 12 वर्ष तक की होती है।
- उत्तर बाल्यावस्था में बच्चों का विकास धीमा व स्थिर हो जाता है।
- गत्यात्मक कौशलों में पूरी दक्षता प्राप्त करता है बालक इस अवस्था में।
- बच्चों के जानकारी का भंडार व चिंतन का तेजी से विकास होता है।
- इस अवस्था में बच्चों का सामाजिक विकास होता है जिसके फल स्वरुप बच्चे आसपास में मित्र बनाना समूह में खेलना इत्यादि जैसे कार्य करते नजर आते हैं।
- उत्तर बाल्यावस्था के समाप्त होते होते बच्चों में जिम्मेदारी उठाने की तत्परता का भी विकास देखने को मिलता है।
किशोरावस्था
- किशोरावस्था 13 से 18 वर्ष के बीच की अवस्था होती है।
- इस अवस्था को बाल्यावस्था और प्रौढ़ अवस्था के बीच का संक्रमण काल कहा जाता है।
- किशोरावस्था को आंधी तूफान की अवस्था कहा जाता है।
- इस अवस्था में शारीरिक विकास की गति तीव्र होती है।
- बच्चों की लंबाई की विधि पूर्ण हो जाती है।
- किशोरावस्था में आंतरिक अंग तंत्र पूर्णता विकसित हो जाता है।
- इस अवस्था में यौन परिपक्वता आती है।
- किशोरावस्था में बच्चे अमूर्त चिंतन की योगिता को पूरी तरह से विकसित कर लेते हैं।
- इस अवस्था में कुसंगति और नशा पान की ओर मोड़ने का खतरा बना रहता है।
- किशोरावस्था में किशोर एवं किशोरियों को उचित मार्गदर्शन व परामर्श की आवश्यकता पड़ती है।
प्रौढ़ावस्था
- बाल विकास की चौथी अवस्था प्रौढ़ावस्था होती है जिसकी अवधि 21 वर्ष से 40 वर्ष तक की होती है।
- इस अवस्था में सभी अंग प्रत्यंग विकास की अंतिम सीमा पर पहुंच जाती है।
- व्यक्ति तार्किक व समाज स्वीकृत व्यवहार करता है।
- प्रौढ़ावस्था में व्यक्ति अपनी जिम्मेदारी का वाहन करने लगता है।
- इस अवस्था में व्यक्ति अमूर्त चिंतन करते हैं।
- प्रौढ़ावस्था में व्यक्ति परिवार व समाज के बीच रहना पसंद करता है।
आज के इस लेख में आपने बाल विकास की अवस्था के बारे में अध्ययन किया।
मैं उम्मीद करता हूं कि यह लेख आपको पसंद आई होगी तथा यह आपके लिए उपयोगी भी होगा। इसी तरह के अन्य लेख को पढ़ने के लिए पढ़ते रहिए…..RKRSTUDY.NET
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