आज के इस लेख में हम लोग भाषा के बारे में पढ़ेंगे। हम लोग जानेंगे कि भाषा किसे कहते हैं? भाषा अधिगम और भाषा अर्जन किसे कहते हैं? साथ ही साथ हम लोग यह भी जानेंगे कि भाषा अधिगम और भाषा अर्जन में क्या अंतर है।

भाषा किसे कहते हैं? [Bhasha kya hai]

भाषा एक संकेतिक साधन है जिसके माध्यम से बालक अपने विचारों एवं भावों को संप्रेषित करता है तथा दूसरे के विचारों एवं भाव को समझता है।

भाषायी योग्यता के अंतर्गत मौखिक अभिव्यक्ति, सांकेतिक अभिव्यक्ति, लिखित अभिव्यक्ति इत्यादि आते हैं।

भाषा अधिगम किसे कहते हैं? [Bhasha Adhigam kya hai]

भाषा को सीखना भाषा अधिगम का अर्थ है। हम कह सकते हैं कि मनुष्य अपने विचारों को अभिव्यक्त करने एवं समाज एवं परिवेश के साथ सामंजस्य स्थापित करने के लिए जिस प्रक्रिया द्वारा अपनी भाषा क्षमता का विकास करता है, वह प्रक्रिया भाषा अधिगम कहलाती है।

भाषा अर्जन किसे कहते हैं? [Bhasha arjan kya hai]

सीखे हुए भाषा को ग्रहण करने की प्रक्रिया एवं उसे समझने की क्षमता अर्पित करना तथा उसे दैनिक जीवन में प्रयोग में लाने को भाषा अर्जन कहते हैं।

भाषा का अर्जन अनुकरण के द्वारा होता है। बालक अपने वातावरण में, अपने परिवेश में जिस प्रकार लोगों को बोलते हुए सुनता है या लिखते हुए देखता है, वह उसे ही अनुकरण करने का प्रयास करता है।

भाषा अधिगम एवं भाषा अर्जन के संदर्भ में विभिन्न विद्वानों के विचार :-

चाॅम्स्की के अनुसार :- भाषा सीखे जाने के क्रम में, वैज्ञानिक की खोज भी साथ-साथ चलती रहती है। इस अवधारणा से आंकड़ों का अवलोकन, वर्गीकरण, संकल्पना निर्माण वह उसका सत्यापन अथवा असत्यता और इस धारणा का शिक्षाशास्त्र के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान लिया जा सकता था।

चाॅम्स्की के अनुसार बच्चों में भाषा सीखने की क्षमता जन्मजात होती है।

जीन पियाजे के अनुसार :- भाषा ने संज्ञानात्मक तंत्रों की भांति परिवेश के साथ अंतः क्रिया के माध्यम से ही विकसित होती है।

वाइगोत्सकी के अनुसार :- बच्चे की भाषा समाज के साथ संपर्क का ही परिणाम है। बच्चा अपनी भाषा के विकास के दौरान दो प्रकार की बोली बोलता है- पहले आत्मकेंद्रित और दूसरी सामाजिक। आत्मकेंद्रित भाषा के माध्यम से बालक अपने आप से संवाद करता है, जबकि सामाजिक भाषा के माध्यम से वह शेष सारी दुनिया से संवाद स्थापित करता है।

भाषा अधिगम और भाषा अर्जन को प्रभावित करने वाले कारक

बालक के भाषा अधिगम और भाषा अर्जन को विभिन्न सामाजिक व व्यक्तिगत परिस्थितियां प्रभावित करती है।

सामाजिक परिवेश

प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक वाइगोत्सकी का मानना है कि बालक की भाषा उसके समाज के साथ संपर्क का परिणाम होता है। समाज में जैसी भाषा का प्रयोग किया जाता है, बालक की भाषा उसी के अनुरूप निर्मित होती है। यदि समाज में अशुद्ध तथा असभ्य भाषा का प्रयोग होगा तो बालक में भी अशुद्ध तथा असभ्य भाषा होने की आशंका होगी। इस प्रकार से सामाजिक परिवेश में बालक के भाषा अधिगम एवं भाषा अर्जन को प्रभावित करती है।

भाषा अर्जन की इच्छा

बालक अपने प्रथम भाषा यानी मात्रिभाषा को सहज रूप से सीख लेता है, किंतु द्वितीय भाषा का अधिगम एवं अर्जुन उसकी भाषा सीखने के प्रति इच्छा पर निर्भर करता है।

बालक में भाषा विकास की प्रारंभिक अवस्था

बालक जन्म लेते ही रोने और चिल्लाने की चेष्टाएं करता है। रोने और चिल्लाने की चेष्टाओं के साथ-साथ वह अन्य आवाज में भी निकलता है। यह आवाजे पूर्ण रूप से स्वाभाविक, स्वचालित एवं नैसर्गिक होती है, इन्हें सीखा नहीं जाता।

उपरोक्त क्रियाओं के बाद बालक में बड़बड़ाने की क्रियाएं प्रारंभ हो जाती है। इस बड़बड़ाने के माध्यम से बालक में स्वर तथा व्यंजन ध्वनियों के अभ्यास का अवसर आते हैं।

शब्द भंडार का विकास

बालकों की आयु बालको का शब्द भंडार
जन्म से 8 माह तक  0
9 माह से 12 माह तक तीन से चार शब्द
डेढ़ वर्ष तक 10 या 12 शब्द
2 वर्ष तक 272 शब्द
ढाई वर्ष तक 450 शब्द
3 वर्ष तक 1000 शब्द
साढ़े 3 वर्ष तक 1250 शब्द
4 वर्ष तक 1600 शब्द
5 वर्ष तक 2100 शब्द
11 वर्ष तक 50,000 शब्द
14 वर्ष तक 80000 शब्द
16 वर्ष से आगे एक लाख से अधिक शब्द

 

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