ब्रूनर के सीखने का सिद्धांत Brunar’s Theory
जेरोम ब्रूनर (Jerome Seymour Bruner (1 अक्टूबर, 1915 – 5 जून, 2016) एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे। उन्होंने मानव के संज्ञानात्मक मनोविज्ञान तथा संज्ञानात्मक अधिगम सिद्धान्त (cognitive learning theory) पर अपना एक उल्लेखनीय योगदान दिया।
ब्रूनर का सिद्धान्त बालक के पूर्व अनुभवों तथा नये विषय-वस्तु में समन्वय के लिए अनुकूल वातावरण तैयार करने पर अधिक बल देता है।
यह सिद्धान्त सीखने में पुनर्बलन, पुरस्कार व दण्ड आदि पर बल देता है।
ब्रूनर के सीखने के सिद्धांत के अनुसार,पाठ योजना में सूचना प्रक्रिया तथा मॉडल का लेखा-जोखा होता है। इसमें सीखने की समस्या का समाधान एवं तथ्यों, प्रत्ययों के बाद के लिए उद्दीपन एवं समुचित वातावरण को पैदा किया जाता है। सीखने के लिए इस पाठ योजना में ब्रूनर द्वारा विकसित प्रतिमान(मॉडल) 1956 में प्रस्तुत किया गया था। इसका प्रयोग पाठ योजना संप्रेषण प्रत्यय निष्पत्ति प्रतिमान सूचना प्रकरण में प्रमुख स्रोत के रूप में किया गया है।
आगमन तरीके के विकास के लिए यह प्रतिमान विशेष उपयोगी है।
ब्रूनर ने अपने प्रयोगों के द्वारा यह जानने का प्रयास किया कि मानव अपने प्रत्ययों की रचना कैसे करता है?
ब्रूनर के सीखने के सिद्धांत में मुख्य रूप से चार प्रतिमान (मॉडल) के अवयवों का प्रयोग किया जाता है
वस्तुओं, व्यक्तियों अथवा घटनाओं की पहचान :- इस प्रतिमान का पहला अवयव है आधार सामग्री को पेश कर प्रत्ययों का बोध कराने के उद्देश्य से रोचक क्रियाओं के द्वारा वस्तुओं, व्यक्तियों अथवा घटनाओं की पहचान करना।
उचित रचना कौशलों का विश्लेषण करना :- पाठ योजना में प्रयुक्त इस प्रतिमान का दूसरा अवयव है आधार सामग्री का विशेष ध्यान करने हेतु प्रयुक्त किए जाने योग्य रचना कौशलों का विश्लेषण करना।
प्रत्ययों का विश्लेषण करना :- यह तीसरा अवयव है विवरण, वार्ता एवं लिखित सामग्री में मिलने वाले प्रत्यायों का विश्लेषण करना।
अभ्यास :- इसका चौथा अवयव है अभ्यास। अभ्यास में छात्रों को पड़ोसियों की रचना करने हेतु कहा जाता है।छात्रों को यह अवसर दिया जाता है कि वह इन प्रात्ययों को परिभाषित एवं परिष्कृत करें।
Brunar ke sikhane ka sidhant
ब्रूनर के सीखने के सिद्धांत का लाभ
- शिक्षण में संप्रत्ययों के अधिगम को विशेष महत्व दिया गया है। कक्षा में शिक्षक को एक कुशल नियंत्रक की भूमिका निभानी पड़ती है। विषय वस्तु के चयन से लेकर उसके प्रस्तुतीकरण एवं विश्लेषण तक उसका सजग रहना छात्रों को जरूरी है।
- आत्मसातीकरण के लिए शिक्षक को अधिकाधिक उदाहरण देने पड़ते हैं। उदाहरणों का विश्लेषण तथा अवबोध कराना भी जरूरी है।
- कक्षा शिक्षण में अनुक्रियात्मक तथा सामाजिक संदर्भ का अपना महत्व होता है। छात्रा अपने प्रात्ययों एवं व्यूह रचना का विश्लेषण शुरू कर देते हैं।छात्र सबसे सरल तथा प्रभावशाली रचना कौशलों को प्रयुक्त करते हैं ताकि नवीन प्रात्ययों का बोध हो सके।
- इस पाठ योजना में ब्रूनर द्वारा निर्मित यह सिद्धांत प्रतिमान के रूप में ज्यादा उपयोगी है। ब्रूनर अपने कार्यपरक उपागम का निर्माण उपरोक्त मॉडल के प्रयोग के साथ निम्न सिद्धांतों को पाठ योजना का प्रमुख बिंदु माना –
- अभिप्रेरणा
- संरचना
- अनुक्रम
- पुनर्बलन।
Read More :-
- जीन पियाजे के नैतिक विकास का सिद्धांत
- CTET Prepration Group : – Join Now
- इसे भी पढ़ें :-