चिपको आंदोलन क्या है? Chipko Aandolan

लेख के अंतर्निहित टॉपिक
चिपको आंदोलन क्या है?
चिपको आंदोलन कब हुआ?
चिपको आंदोलन किसके नेतृत्व में हुआ?
खेजड़ली गांव में चिपको आंदोलन कब हुआ?
रैणी गांव में चिपको आंदोलन कब हुआ?

 

चिपको आंदोलन से संबंधित स्मरणीय तथ्य

  • चिपको आंदोलन के नेता सुंदरलाल बहुगुणा थे।
  • यह आंदोलन उत्तराखंड के रैणी गांव में सन् 1973 में हुई थी।इस आंदोलन में श्रीमती गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने पेड़ से लिपट कर पेड़ की रक्षा की।
  • यह आंदोलन राजस्थान के जोधपुर के खेजड़ली गांव में सन् 1730 ई में हुई थी। इस आंदोलन में अमृता देवी विश्नोई ने खेजड़ी नामक वृक्ष की रक्षा करते हुए अपने प्राणों की आहुति दी।

चिपको आंदोलन क्या है?

चिपको शब्द का अर्थ चिपकना या लिपटना है। चिपको आंदोलन पेड़ों से चिपक कर अपने प्राणों की आहुति देने की घटना है।
इस आंदोलन में महिलाओं ने पेड़ों से चिपक कर अपने प्राणों की आहुति दी लेकिन पेड़ों की जान बचाई है।

चिपको आंदोलन भारत के 2 राज्यों में हुआ है।

यह घटना सितंबर 1730 में राजस्थान के जोधपुर जिले के खेजड़ली गांव में घटित हुआ।
यह घटना चिपको आंदोलन के नाम से मशहूर आंदोलन बन गया।

खेजड़ली गांव में चिपको आंदोलन

राजस्थान के जोधपुर जिले के अंतर्गत आने वाली खेजरोली गांव में सितंबर 1730 में पेड़ों के रक्षा से जुड़ी एक घटना घटी जो चिपको आंदोलन के नाम से मशहूर हो गया।

यह घटना उस समय की है जब दिल्ली के मुगल सम्राट औरंगजेब का शासन एवं राजस्थान में जोधपुर के राजा थे अजीत सिंह। जोधपुर के राजा अजीत सिंह को आलीशान महल बनाने की इच्छा हुई परंतु जब महल में ईंटों की पकाई के लिए ईंधन की आवश्यकता हुई तो सभी चिंतित हो गए क्योंकि उस मरूभूमि क्षेत्र में वनों का काफी अभाव था।इसी समय किसी ने राजा अरिजीत सिंह का खेजड़ली गांव के हरे भरे वनों की तरफ ध्यान आकर्षित कराया।राजा ने तत्काल खेजड़ली गांव के वनों को काटने हेतु आदेश दिया तथा राज्य कर्मचारी अपनी अपनी कुल्हाड़ी लेकर रवाना हो गए। वर्षा ऋतु का समय होने से गांव के लगभग सभी पुरुष खेतों में गए थे। जब वे कर्मचारी पेड़ काटने की तैयारी में थे तभी श्रीमती अमृता देवी एवं उनकी तीन पुत्रियां आशु बाई, रतनी बाई और भागू बाई तीनों ने पेड़ नहीं काटने के लिए कर्मचारियों से प्रार्थना की कि वे हरे पेड़ ना काटे क्योंकि हरे पेड़ काटना धर्म के खिलाफ है।

अमृता देवी ने कहा –

“वाम लिया दाग लगे टुकड़ों देवो न दान
सर साठे रुख हरे तो भी सस्ता जान”।

अर्थात अगर सर कट जाए एवं पेड़ बच जाए तो यह सौदा है। अमृता देवी अपने धर्म की रक्षा के लिए पेड़ से लिपट गई। कुल्हाड़ी ओके प्रहार से उसका क्षत – विक्षत शरीर जमीन पर गिर पड़ा।अमृता देवी के बाद उनकी तीन मासूम का कन्या भी पेड़ से लिपट गई एवं उनके शीश भी धड़ से अलग कर दिए गए। यह दुखद समाचार सुनकर आमीन विश्नोई समाज एकत्रित हो गए। उन्होंने हरे वृक्षों के कटाव को रोकने के लिए धर्म की रक्षा के लिए प्राण निछावर करने की शपथ ली। हरे वृक्ष को बचाने हेतु उस स्थान पर कुल 363 व्यक्ति शहीद हुएमरने वाली सभी विश्नोई जाति के थे।

जब यह समाचार जोधपुर के राजा ने सुना तो उन्होंने खुद खेजड़ली गांव आकर तत्काल पेड़ को काटने का आदेश वापस लिया। साथ में वह आदेश दिया कि भविष्य में अब कोई हरा पेड़ नहीं काटा जाना चाहिए।

खेजड़ली के इस महान बलिदान के पीछे राजस्थान में 15 वीं सदी में हुई बिश्नोई पंथ के प्रवर्तक संत जंभोजी की प्रेरणा काम कर रही थी। जंभोजी ने सदाचार के 29 नियम बनाएं जिनमें तीन पर्यावरण तथा प्रकृति संरक्षण संबंधी बहुत ही महत्वपूर्ण है जो निम्नलिखित है

  • हरे वृक्ष को ना काटे।
  • सभी जीवो के प्रति दया भाव रखें।
  • दुधारू पशुओं की उचित देखभाल करें।

इस तरह कहा जा सकता है कि बिश्नोई समाज हमारी सांस्कृतिक धरोहर, सामाजिक मूल्यों एवं परंपराओं का संवाहक है।

चिपको आंदोलन क्या है?

रैणी गांव में चिपको आंदोलन

यह आंदोलन मार्च 1973 में सीमांत जिला चमोली उत्तराखंड (पहले उत्तर प्रदेश में था) के रैणी गांव में हुई। इस घटना में पुरुषों की अनुपस्थिति में श्रीमती गौरा देवी के नेतृत्व में चिपको पद्धति को अपनाकर महिलाओं ने रहने गांव में वनों की भारी विनाश से बचाया।

मार्च 1947 में रैणी गांव के वनों में बहुत बड़ी संख्या में सरकार ने पेड़ को काटने हेतु छापा मारा। इस कदम की योजना के विरुद्ध श्री चंडी प्रसाद भट्ट, श्री गोविंद सिंह रावत, एवं श्रीमती गौरा देवी के नेतृत्व में क्षेत्र के विभिन्न गांव के महिला जंगल दलो, छात्रों तथा कार्यकर्ताओं ने एकजुटता से वन विनाशकारी कटाव को रोकने का जिम्मेदारी उठाया।

26 मार्च 1947 के दिन भूमि के मुआवजे के संदर्भ में रैणी गांव के समस्त पुरुष चमोली गए हुए थे। गांव में सिर्फ महिलाएं तथा बच्चे थे। उसी दिन वन विभाग के कर्मचारियों ने पेड़ काटने वालों के साथ रहने गांव पर धावा बोल दिया। ऐसा एक सुनियोजित योजना के तहत किया गया।जैसे ही मजदूर वन विभाग के कर्मचारियों के साथ रहने गांव की तरफ बढ़ रहे थे एक छोटी लड़की ने उन्हें पहचान लिया कि हुए पेड़ काटने वाले हैं।वह लड़की भागती हुई गौरा देवी के पास पहुंची तथा पेड़ काटने वालों की सूचना दी। गौरा देवी ने तुरंत ही 27 महिलाओं के साथ वन की तरफ प्रस्थान किया।

गौरा देवी सहित सभी महिलाओं ने वन विभाग के कर्मचारियों को पेड़ ना काटने तथा वापस जाने की सलाह दी।

गौरा देवी ने कहा,

जंगल हमारा मायका है एवं पेर ऋषि हैं। अगर जंगल कटेगा तो हमारा खेत, मकान के साथ मैदान भी नहीं रहेंगे। जंगल बचेगा तो हम बचेंगे।

एक कर्मचारी बंदूक तानकर खड़ा हो गया तब गौरा देवी ने कहा कि जंगल काटने से पहले मुझे गोली मार नी होगी तथा यह कहते हुए वह पेड़ से चिपक गई। इस आंदोलन में महिलाओं को काफी संघर्ष करना पड़ा एवं गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाएं फिर से चिपक गई। ठेकेदार के एजेंट को अपनी मजदूरो सहित लौटना पड़ा।

रैणी की चिपको आंदोलन की घटना अपने आप में विशेष तरह की थी, क्योंकि इसमें पुरुषों की अनुपस्थिति में महिलाओं ने बड़ी सूझबूझ तथा कीमत के साथ कार्य किया तथा अपनी जान की परवाह किए बिना पैरों से चिपक गई। इसी तरह से रहनी बनके 2451 पेड़ को काटने से बचाने में हुए सफल हो गई।

चिपको आंदोलन के नेता कौन थे?

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