इस लेख के माध्यम से आप महात्मा गांधी के जीवन दर्शन एवं दार्शनिक विचार के बारे में अध्ययन करेंगे आप जानेंगे कि महात्मा गांधी के दार्शनिक विचार कौन-कौन से थे।
महात्मा गांधी के जीवन दर्शन एवं दार्शनिक विचार
महात्मा गांधी जी पर भारतीय दर्शन का गहरा प्रभाव पड़ा है। उन्होंने अपने विचारों को गीता, उपनिषद जैसे प्रसिद्ध हिंदू धार्मिक ग्रंथों के पढ़ने, समझने तथा मनन करने के बाद प्रकट किया।
गांधी जी के जीवन दर्शन एवं दार्शनिक विचार के निम्नलिखित तत्व है:-
1. एकेश्वरवादी :- महात्मा गांधी जी का विश्वास ईश्वर में है। उनकी दृष्टि में ईश्वर एक हैं, उनके नाम अनेक हैं। वे कहते हैं कि केवल ईश्वर ही स्वभाविक है। विश्व माया रूपी है। केवल ईश्वर ही परिवर्तन के बीच में स्थिर रहता। गांधीजी की दृष्टि में ईश्वर सृष्टि में अंतिम सत्य है।
2. आत्मा:- आत्मा के संबंध में गांधीजी कठोपनिषद की बातों में विश्वास रखते थे। जिसमें शरीर रूपी रथ से आत्मा योद्धा के सदृश्य हैं, बुद्धि सारथी, है तथा मन लगाम है, इंद्रियां घोड़े हैं और शब्द रूप रस गंध स्पर्श क्षेत्र है।
3. प्रकृति जगत :- प्रकृति अनित्य है। ऐसा विश्वास गांधीजी का था। गांधीजी के विचार में संसार सत्य है। उसकी सत्ता व्यवहारिक है। व्यवहारिक सत्ता के विचार में माया है। माया का अर्थ उन्होंने भ्रम नहीं रूपांतर आभास माना है।
4. सत्य:- गांधीजी के लिए सत्य के अतिरिक्त अन्य कोई भगवान नहीं है। वह सत्य को ईश्वर मानते हैं ना कि ईश्वर को सत्य। इसीलिए वह कहते हैं कि सत्य ही भगवान है। सत्य अंतिम साध्य है और अहिंसा विनय तप साधना एवं त्याग इस साध्य की प्राप्ति के साधन है।
5. अहिंसा:- गांधीजी अहिंसा के सच्चे पुजारी थे। अहिंसा परमो धर्म: के उपासक थे। अहिंसा के द्वारा ही हुए ईश्वर का दर्शन करना चाहते थे। गांधीजी की अहिंसा का अर्थ कायरता नहीं है। वह एक नैतिक बल है जिसके समक्ष प्रबल शक्ति भी झुक जाती है।
6. प्रेम:- गांधीजी विश्व में प्रेम का अखंड साम्राज्य बनाना चाहते थे। वे मानव समाज में प्रेम की पवित्र धारा बहाना चाहते थे। उन्होंने अपने को प्रेम की प्रतिमूर्ति बना लिया था और इसीलिए समाज के दलित एवं नीच कहलाने वाले हरिजनों को वे गले लगाते थे। उन्होंने प्रेम को अहिंसा का अंग माना है।
7. श्रम :- महात्मा गांधी श्रम को अत्याधिक महत्व देते थे। उनका कहना था कि प्रत्येक मनुष्य को अपने परिश्रम की कमाई खानी चाहिए। श्रम को उन्होंने धनुष्य श्रेष्ठ माना है। वे कहते हैं कि श्रम धन से बहुत अधिक श्रेष्ठ है। बिना श्रम के सोना, चांदी अनुपयोगी भार के समान है।
8. सर्वोदय:- गांधीजी के सामाजिक विचार और मनुष्य के प्रत्यय की कुंडली केवल एक शब्द सर्वोदय में निहित है। इसका शाब्दिक अर्थ सभी का उत्थान से है। गांधी जी राम राज्य की स्थापना करना चाहते थे। जिसमें अन्याय, विद्वेष घृणा, मत्सर का कहीं कोई चिन्ह नहीं होगा। जाति पांति, ऊंच-नीच, अमीर गरीब का भेदभाव नहीं होगा। समता का अखंड साम्राज्य होगा। व्यक्तिगत तथा सामूहिक जीवन की नींव सत्य और अहिंसा की सुदृढ़ ईटों पर खड़ी होगी और किसी को कष्ट नहीं होगा। महात्मा गांधी कहते थे कि मानव अहं की भावना को त्याग दें और विश्वबंधुत्व तथा वसुधैव कुटुंबकम के सिद्धांत को व्यवहारिक जीवन में डाल दे।
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