आज के इस लेख में आप लोग जॉन डीवी के शैक्षिक विचार के बारे में अध्ययन करेंगे। लेख के माध्यम से आप जानेंगे कि- जॉन डीवी के शिक्षा दर्शन क्या है? इसे कई अलग-अलग नाम से भी जाना जाता है जो कुछ इस प्रकार है…John dewey philosophy of education in hindi, John dewey ka shiksha me yogdan, जॉन डीवी का शिक्षा दर्शन, जॉन डीवी के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य , जॉन डीवी के शैक्षिक विचार, John dewey philosophy of education
तो चलिए सबसे पहले हम लोग जॉन डीवी के जीवनी के बारे में अध्ययन करते हैं
जॉन डीवी का जीवन-परिचय (John dewey ka jivan parichay)
जॉन डीवी का जन्म 1859 में अमेरिका में वॉरमॉन्ट के वर्लिगटन नगर में हुआ था। उनके पिता आर्चवाल्ट ड्यूवी था। फलवाद का सर्वश्रेष्ठ उदाहरण ड्यूवी का शिक्षा दर्शन को माना गया है। आधुनिक काल में संयुक्त राष्ट्र अमेरिका( USA) में जनतंत्रीय शिक्षा का सबसे बड़ा व्याख्याता (Assistant professor) जॉन डीवी को माना गया है। वे व्यवहारवाद के प्रसिद्ध दार्शनिक थे। 19 वर्ष की अवस्था में उन्होंने दर्शनशास्त्र में सबसे अधिक अंक प्राप्त करके वरमाण्ट विश्वविद्यालय में बीए की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने मिनेसोटा मिशीगन और शिकागो विश्व विद्यालय में दर्शनशास्त्र का अध्ययन करते रहे। शिकागो विश्वविद्यालय में उन्होंने दर्शनशास्त्र के साथ साथ शिक्षा शास्त्र भी पढ़ाया। तभी से उन्हें शिक्षा में रूचि हो गई। उसके बाद वे शिकागो में प्रोग्रेसिव स्कूल नाम का एक विद्यालय की स्थापना 1896 ईसवी में की। जिसमें करके सीखने के सिद्धांत को कार्य रूप में परिणत किया गया। इस सिद्धांत में डीवी ने अपने दर्शन के आधार पर शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रयोग किए।
डीवी के अनुसार शिक्षा का अर्थ
डीवी के अनुसार, “व्यापक अर्थ में शिक्षा जीवन के सामाजिक रूप की अविरलता है।”
दूसरे स्थान पर डीवी ने शिक्षा को पूर्णरूपेण सामाजिक प्रक्रिया बताया है, जिसके प्रमुख दो आधार हैं:- व्यक्तिगत और सामाजिक। व्यक्ति की शक्तियों, रुचियों, योग्यताओं आदि को भी ध्यान में रखकर उसके अनुकूल उसे शिक्षा देनी चाहिये, परन्तु साथ ही साथ उसकी समस्त शक्तियों, रुचियों आदि को सामाजिक मूल्य देना है।
John dewey philosophy of education
बालक की शक्तियों एवं रुचियों का वास्तविक मूल्य वही है, जो समाज उन्हें देता है। सामाजिक वातावरण में ही उनका विकास होता है और उसे अक्षुण्य बनाये रखने में उनकी सार्थकता है।” एक अन्य स्थान पर जॉन डीवी ने शिक्षा को इस प्रकार परिभाषित किया है, “शिक्षा की प्रक्रिया अनुभवों की वृद्धि एवं संशोधन है। शिक्षा व्यक्ति को अपनी कुशलता बढ़ाने के साथ-साथ उन अनुभवों के सामाजिक मूल्यों को बढ़ाने में उत्तरोत्तर सहायता करती है।” इस प्रकार हम कह सकते हैं कि डीवी ने व्यावहारिक ज्ञान पर अधिक बल दिया है, केवल सैद्धान्तिक शिक्षा को अस्वाभाविक तथा बेकार माना है।
जॉन डीवी शिक्षा के अर्थ को निम्नलिखित प्रकार से स्पष्ट किया है-
(1) शिक्षा मानव जीवन के लिये आवश्यक है अन्यथा उसके बिना बालक की मूल प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण नहीं रखा जा सकता।
(2) शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है। समस्त शिक्षा व्यक्ति के द्वारा सामाजिक चेतना में भाग लेने से आगे बढ़ती है।
(3) शिक्षा छात्र के विकास से सम्बन्ध रखती है।
(4) शिक्षा पुनर्निर्माण की प्रक्रिया है। (5) साध्य से साधन अधिक महत्त्वपूर्ण है।
जॉन डीवी का शिक्षा दर्शन क्या है? जॉन डीवी का शिक्षा दर्शन लिखिए/ जॉन डीवी के शिक्षा संबंधी विचार या जॉन डीवी के शैक्षिक विचार
जॉन डीवी मानते थे कि शिक्षा सामाजिक प्रक्रिया है वे शिक्षा को ना तो साध्य और ना ही मनुष्य जीवन की तैयारी का साधन ही मानते थे। यह तो स्वयं जीवन है। इनका मानना था कि मनुष्य कुछ जन्मजात शक्तियां लेकर पैदा होता है सामाजिक चेतना में भाग लेने से उनकी इन शक्तियों का विकास होता है।
जॉन डीवी ने शिक्षा को मनोवैज्ञानिक और सामाजिक पक्ष कहा है-
मनोवैज्ञानिक पक्ष में बालक की जन्मजात शक्तियां, रुचियां एवं व्यक्तिगत विशेषताएं आती है, और
सामाजिक पक्ष में समाजिक दशाएं परिवार पास पड़ोस संघ समूह सभ्यता संस्कृति आते हैं। जॉन डीवी का कहना है कि मनुष्य समाज में रहकर नित्य नए-नए अनुभव करता है। और इन अनुभवों में से समाज का अनुभव का चुनाव करता है। इनके अनुसार “शिक्षा अनुभव के पुनर्निर्माण की प्रक्रिया हैं।”
जॉन डीवी के अनुसार मनुष्य जीवन की सबसे बड़ी विशेषता विकास है। यह विकास अनेक दिशाओं में होता है। Ex.-
- शारीरिक विकास
- मानसिक विकास
- सामाजिक विकास
इस विकास से ही मनुष्य अपने प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण पर नियंत्रण रखता है और जो प्राप्त किया जा सकता है उसे प्राप्त करता है।
जॉन डीवी के शिक्षा के अन्य पक्ष
1. जन शिक्षा
John dewey लोकतंत्र के समर्थक थे और समाज को आदर की दृष्टि से देखते थे। उन्होंने लोकतांत्रिक शिक्षा को मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे तथा उसकी व्यवस्था करना राज्य का अनिवार्य कर्तव्य मानते थे। जॉन डीवी के अनुसार राज्य के सभी बच्चों को विकास का समान अवसर मिलना चाहिए।
2.. स्त्री शिक्षा
जॉन डीवी लोकतंत्र के समर्थक थे और लोकतंत्र स्त्री पुरुष में कोई भेद नहीं करता सभी को अपनी रुचि रुझान योग्यता और आवश्यकता अनुसार विकास का स्वतंत्र अवसर मिलना चाहिए। जॉन डीवी के अनुसार स्त्री पुरुष दोनों को शिक्षा का सम्मान अवसर मिलनी चाहिए।
3.. व्यवसायिक शिक्षा
इनके द्वारा ना तो शिक्षा का कोई निश्चित उद्देश्य है और ना तो पाठ्य चर्चा की कोई निश्चितता बल्कि सामाजिक कुशलता की चर्चा करते हुए उन्होंने मनुष्य को रोजी रोटी कमाने पर बल दिया है। इनके इन विचारों से व्यवसायिक शिक्षा को बढ़ावा मिलता है।
4.. धार्मिक एवं नैतिक शिक्षा
जॉन डीवी अपने प्रारंभिक काल में आदर्शवाद से प्रभावित थे उस समय उन्होंने धार्मिक एवं नैतिक महत्व को मानते थे। बाद में वे जेम्स के प्रयोगवाद से प्रभावित हुए। वह प्रत्येक ज्ञान और क्रिया को वास्तविक जीवन की कसौटी पर कसने लगे और व्यक्ति के जीवन के लिए क्या उपयोगिता है उसे देखते हुए ज्ञान एवं कार्य का समर्थन करने लगे।
जॉन डीवी के अनुसार शिक्षा का उद्देश्य क्या है/जॉन डीवी के शिक्षा के उद्देश्य
जॉन डीवी जीवन के किसी अंतिम उद्देश्य में विश्वास नहीं करते थे। वे शिक्षा को साध्य एवं साधन न मानते हुए जीवन मानते थे। उनके जीवन में शिक्षा का कोई निश्चित उद्देश्य नहीं हो सकता। उनके अनुसार यदि शिक्षा का कोई उद्देश्य है तो सिर्फ मनुष्यों के गुणों का विकास करना। वर्तमान जीवन को कुशलतापूर्वक जीवन के लिए जीवन का रास्ता प्रसस्त हो सके।
जॉन डीवी के शिक्षा के उद्देश्य निम्नलिखित हैं-
1.अनुभवों का पुनर्निर्माण और पर्यावरण के साथ समायोजन:
जॉन डीवी के अनुसार मानव जीवन गतिशील हैं परिवर्तन शील है। अतः उसकी शिक्षा भी गतिशील एवं परिवर्तनशील होना चाहिए।
2. सामाजिक कुशलता का विकास
जॉन डीवी के अनुसार मनुष्य जो कुछ विचार करता है वह समाज में रहकर उसकी चेतना में भाग लेकर ही करता है।
3. वातावरण के साथ अनुकूलन
जॉन डीवी ने लिखा है कि शिक्षा की प्रक्रिया समायोजन की एक निरंतर प्रक्रिया है जिसका प्रत्येक अवस्था में उद्देश्य होता है।
4. गतिशील एवं लचीलापन का निर्माण:
जॉन डीवी ने शिक्षा का एक तत्कालिक उद्देश्य गतिशील एवं लचीले मनका निर्माण मानते हैं। यदि हम समाजिक प्रयोगवादी पद्धति चाहते हैं तो हमें पूर्व निर्धारित मूल्यों का परित्याग करना होगा।
5. लोकतंत्रीय जीवन का प्रशिक्षण
जॉन डीवी लोकतंत्र के समाज के समर्थक थे। समाज के कार्यों में भाग लेने के लिए व्यक्ति में सात प्रकार की क्षमता होनी चाहिए नागरिकता, कार्य करने की क्षमता, योग गृहस्थ, व्यवसाय, स्वस्थ शरीर, अवकाश का उचित उपयोग, नैतिकता एवं चरित्र निर्माण।
जॉन डीवी के अनुसार पाठ्यक्रम कैसी होनी चाहिए?
शिक्षा का पाठ्यक्रम और विधि बालक की मूल प्रवृत्तियों और शक्तियों के आधार पर निश्चित की जानी चाहिए। बालक की शिक्षा उसकी रूचिओं के अनुसार देनी चाहिेए उनका मानना था कि परंपरागत विषय केंद्रित पाठ्यक्रम दूषित है। उन्होंने माना है कि कृत्रिमता से दूर बच्चों के वास्तविक जीवन की क्रियाओं पर आधारित होनी चाहिए। वे पाठ्य चर्चा के निर्माण में बच्चों की मनोवैज्ञानिक स्थिति सामाजिक स्थिति और विषय एवं क्रियाओं की उपयोगिता पर बल देते थे और उन्हें पाठ्यक्रम के निर्माण का आधार बनाये जो निम्नलिखित हैं-
- पाठ्यक्रम बाल एवं समाज केंद्रित होनी चाहिए।
- पाठ्यक्रम बच्चों की रुचि पर आधारित होनी चाहिए।
- पाठ्यक्रम उपयोगी होनी चाहिए।
- पाठ्यक्रम अनुभव चमक होनी चाहिए।
- पाठ्यक्रम को जीवन से निकटतम संबंध रखनी चाहिए।
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