आज के इस लेख में आप लोग कोठारी आयोग के बारे में अध्ययन करेंगे। लेख के माध्यम से आप जानेंगे कि-कोठारी आयोग क्या है? कोठारी आयोग क्या है? कोठारी आयोग से आप क्या समझते हैं? कोठारी आयोग के प्रतिवेदन को बताएं? कोठारी आयोग की सिफारिशें का वर्णन करें। तो चलिए जानते हैं कि कोठारी आयोग क्या है?

कोठारी आयोग क्या है?

14 जुलाई सन 1964 को अपने प्रस्ताव में भारत सरकार ने आयोग की नियुक्ति की। इस आयोग के अध्यक्ष प्रसिद्ध शिक्षाविद प्रोफेसर डी.एस. कोठारी थे। उनके नाम पर ही इस आयोग को कोठारी कमीशन भी कहा जाता है। इस आयोग को नियुक्ति करने का मुख्य कारण देश की माध्यमिक शिक्षा प्रणाली में समरूपता का लाना था। कई राज्यों में अभी भी माध्यमिक शिक्षा को भिन्न भिन्न रूप प्रचलित थे। इन सभी कारणों से जिस नए कमीशन का गठन हुआ, वह कोठारी कमीशन के नाम से मशहूर हुआ।

कोठारी आयोग के अध्यक्ष कौन थे?

इस शिक्षा आयोग का गठन भारत सरकार के पारित प्रस्ताव दिनांक 14 जुलाई 1964 के आदेशानुसार किया गया डॉ डी. एस. कोठारी की अध्यक्षता में गठित इस आयोग का कार्यकाल इससे पहले गठित सभी कमीशन से कहीं ज्यादा लंबा था। इसके अतिरिक्त इसका गठन शिक्षा के राष्ट्रीय ढांचे और आम सिद्धांतों और नीतियों के बारे में शिक्षा के प्रत्येक स्तर और लोगो के विकास के लिए सुझाव प्राप्त करने के लिए किया गया था। डॉक्टर कोठारी के अतिरिक्त इस आयोग में 16 सदस्य थे, जिनमें से 11 भारतीय और 5 विदेशी लोग थे। इस आयोग के सचिव पद का भारत श्री जे.पी. नैयर,सलाहकार शिक्षा मंत्रालय को सौंपा गया। 2 अक्टूबर को प्रारंभ हुए इस आयोग ने लगभग डेढ़ साल के दौरान 20 जून 1966 को अपनी रिपोर्ट सरकार के सामने प्रस्तुत कर दी।

कोठारी आयोग के लागू करने का क्या कारण थे?

देखिए कोई भी आयोग को लागू किया जाता है या हटाया जाता है तो उसके पीछे कुछ ना कुछ कारण होती है। ठीक उसी प्रकार से कोठारी आयोग के लागू करने के अनेकों कारण थे। जिसमें से प्रमुख कारण निम्नलिखित है:-

स्वतंत्रता मिलने के पश्चात भारत सरकार ने देश की परंपराओं एवं मान्यताओं के अनुरूप आधुनिक समाज की आवश्यकता तथा आकांक्षाओं को मध्य नजर रखते हुए राष्ट्रीय शिक्षा प्रणाली का विकास करने का प्रयत्न किया है। इसके लिए अनेकों कदम उठाए गए लेकिन शिक्षा प्रणाली का विकास समय की आवश्यकता अनुसार नहीं हो सका।

स्वतंत्रता मिलने के समय से भारत में राष्ट्रीय से विकास के एक नए युग में प्रवेश किया और इस युग के अनेकों लक्ष्य को रखा जो कुछ इस प्रकार से है:-

  • शासन एवं जीवन के तरीकों के रूप में धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र की स्थापना करना।
  • जनता की निर्धनता का अंत करना।
  • सभी लोगों के लिए रहन-सहन का उचित स्तर बनाना।
  • कृषि का आधुनिक कराने एवं उद्योग का तीव्र विकास कराना।
  • आधुनिक विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी का प्रयोग तथा पारंपरिक आध्यात्मिक मूल्यों के साथ सामंजस्य को प्राप्त करना।

इसी प्रकार के अनेकों लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए प्रारंभिक शिक्षा में कुछ परिवर्तन की आवश्यकता थी जिसको लेकर के कहने कोठारी आयोग का जरूरत पड़ा।

कोठारी आयोग का प्रतिवेदन

कोठारी आयोग ने अपने व्याप्त कार्यक्षेत्र को 13 दिनों में विभक्त किया। इसके लिए उन्होंने साथ कार्य समिति का निर्माण किया। इस आयोग ने 21 माह तक निरंतर भारतीय शिक्षा के विभिन्न भागों का अध्ययन किया आयोग ने 29 जून 1966 की अपनी रिपोर्ट उस समय के तत्कालीन शिक्षा मंत्री श्री एम. सी. छागला  के सामने प्रस्तुत की। इस प्रतिवेदन या रिपोर्ट को शिक्षा एवं राष्ट्रीय लक्ष्य कहा जाता है।

कोठारी आयोग के सुझाव एवं सिफारिशें

कोठारी आयोग में कई प्रकार के सिफारिशें की गई है, जिससे हमारा प्रारंभिक शिक्षा प्रणाली जो है वह और उत्कृष्ट हो सके। तो चलिए देखते हैं कि कोठारी आयोग के प्रमुख सुझाव एवं सिफारिशें कौन-कौन से हैं?

शिक्षा तथा राष्ट्रीय लक्ष्य

शिक्षा तथा राष्ट्रीय लक्ष्य के संबंध में कोठारी आयोग ने कहा है कि- शिक्षा को लोगों के जीवन आवश्यकताओं एवं आकांक्षाओं के अनुरूप होनी चाहिए। जिससे उनका आर्थिक सामाजिक राजनीतिक सांस्कृतिक विकास करके राष्ट्रीय लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सके। इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए आयोग ने निम्न सुझाव दिए हैं-

  • शिक्षक द्वारा उत्पाद में वृद्धि।
  • सामाजिक एवं राष्ट्रीय एकता का विकास।
  • आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में तीव्रता।
  • प्रजातंत्र की सुदृढ़ता।
  • सामाजिक नैतिक एवं आध्यात्मिक मान्यताओं का विकास तथा चरित्र निर्माण।

शिक्षा की संरचना एवं स्तर

कोठारी कमीशन के द्वारा प्रस्तावित संरचना 3+2+3 शिक्षा योजना है।

  • इस संरचना के तहत सामान्य शिक्षा की अवधि 10 वर्ष की रखी जाए।
  • प्रारंभिक शिक्षा प्रारंभ होने से पूर्व 3 वर्षों तक पूर्व विद्यालय और पूर्व प्राथमिक शिक्षा का प्रबंध किया जाए।
  • प्राथमिक शिक्षा की अवधि 7 से लेकर 8 वर्ष रखी जाए तथा इसे दो भागों में बांटा जाए। पहला 4 से लेकर 5 वर्षों तक निम्न प्राथमिक स्तर तथा दूसरा 3 वर्ष का उच्च प्राथमिक स्तर।
  • निम्न प्राथमिक शिक्षा की अवधि 3 या 2 वर्ष की जाए।
  • निम्न प्राथमिक स्तर पर सामान्य माध्यमिक शिक्षा के साथ-साथ व्यवसायिक शिक्षा का भी आयोजन किया जाए।
  • दसवीं कक्षा एवं विशिष्ट कार्यक्रमों की व्यवस्था समाप्त की जाए।
  • माध्यमिक विद्यालयों में हाई स्कूल एवं हायर सेकेंडरी स्कूल को सम्मानित किया जाए।

शिक्षक की स्थिति

शिक्षण व्यवस्था में प्रतिभाशाली व्यक्तियों को आकर्षित करने के लिए शिक्षकों की आर्थिक सामाजिक एवं व्यवसाय की स्थिति को उन्नत करना आवश्यक है। इसके संबंध में आयोग ने निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए हैं-

  • भारत सरकार द्वारा शिक्षकों का न्यूनतम वेतन निर्धारित किया जाए सरकारी एवं गैर सरकारी सभी विद्यालयों में एक समान वेतन क्रम लागू किया जाए।
  • प्रत्येक संस्था में शिक्षकों को कार्य संपादन संबंधी न्यूनतम सुविधाएं प्रदान की जाए।
  • सभी शिक्षकों को व्यवसायिक उन्नति करने के लिए उपयुक्त सुविधाएं प्रदान की जाए।
  • व्यक्तिगत विद्यालयों में शिक्षकों की सेवा दशाएं सरकारी विद्यालयों के शिक्षकों की सेवा दशाएं के समान ही लागू किया जाए।
  • शिक्षकों के लिए सरकारी गृह निर्माण योजनाओं को प्रोत्साहन दिया जाए।
  • शिक्षकों पर चुनावों में भाग लेने पर किसी प्रकार का प्रतिबंध ना लगाया जाए।

शिक्षक-शिक्षा

आयोग ने शिक्षक प्रशिक्षण व्यवसाय को समुन्नत करने के लिए निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए हैं:-

  • शिक्षा को एक विषय के रूप में स्नातक एवं स्नातकोत्तर पाठ्यक्रमों में पढ़ाया जाए।
  • प्रत्येक प्रशिक्षण संस्था में प्रसार सेवा विभाग की स्थापना की जाए।
  • प्रशिक्षण विद्यालयों के पाठ्यक्रम एवं विषय सामग्री को संशोधित किया जाए।
  • प्रशिक्षण कॉलेज के शिक्षक के पास दो स्नातकोत्तर एवं शिक्षा की उपाधि का होना अनिवार्य किया।
  • अप्रशिक्षित शिक्षकों के लिए ग्रीष्मकालीन संस्था की व्यवस्था की जाए।
  • प्रत्येक विश्वविद्यालय एवं कॉलेज में नए शिक्षकों के लिए नियमित रूप से अनुस्थापन पाठ्यक्रमों की व्यवस्था की जाए।

शैक्षिक अवसरों की समानता

शैक्षिक अवसरों की समानता के लिए आयोग ने निम्नलिखित सुझाव दिए हैं:-

  • निम्न प्राथमिक शिक्षा को भी निशुल्क बनाने के प्रयत्न किए जाएं।
  • प्राथमिक स्तर पर बालकों को पाठ्य पुस्तकें एवं लेखन सामग्री बिना शुल्क के वितरित की जाए।
  • माध्यमिक स्कूलों एवं कॉलेजों में पुस्तक घरों की व्यवस्था की जाए।
  • माध्यमिक शिक्षा एवं उच्च शिक्षा संबंधी पुस्तकालयों में विद्यार्थी के लिए पाठ्य पुस्तकों को पर्याप्त मात्रा में मंगा कर व्यवस्था की जाए।
  • शिक्षा के सभी स्तरों पर प्रतिभावान गरीब विद्यार्थी के लिए छात्रवृत्ति यों की व्यवस्था की जाए।

विद्यालय शिक्षा का स्तर

आयोग ने विद्यालय स्तर के परिणाम में वृद्धि करने के लिए निम्नलिखित सुझाव को दिया है:-

  • प्रत्येक जिले में पूर्व प्राथमिक शिक्षा के विकास के लिए केंद्र स्थापित किया जाए।
  • व्यक्तिगत संस्थाओं को इस शिक्षा में सहयोग के लिए प्रोत्साहित किया जाए।
  • पूर्व प्राथमिक विद्यालयों के पाठ्यक्रमों को पर्याप्त मनोरंजक एवं लचीला बनाया जाए।
  • माध्यमिक शिक्षा को व्यवसाय से जुड़ी बनाया जाए तथा कम से कम 50% विद्यार्थी को व्यवसायों की ओर प्रेरित किया जाए।
  • माध्यमिक शिक्षा के अवसरों की समानता पर बल दिया जाए।
  • बालिकाओं अछूतों जनजातियों में माध्यमिक शिक्षा का विस्तार करने के लिए विशेष कार्यक्रमों का आयोजन किया जाए।

विद्यालय का पाठ्यक्रम

आयोग ने विभिन्न स्तरों के पाठ्यक्रमों की रूपरेखा एवं लिखित रूप से प्रस्तुत की है:-

  • निम्न प्राथमिक शिक्षा में मातृभाषा क्षेत्रीय भाषा में से कोई एक भाषा, गणित, पर्यावरण अध्ययन, विज्ञान, सामाजिक विज्ञान कार्यानुभव एवं स्वास्थ्य प्रशिक्षण आदि।
  • उच्चतर प्राथमिक शिक्षा में दो भाषाएं मातृभाषा या प्रादेशिक भाषा, हिंदी या अंग्रेजी, गणित, विज्ञान, सामाजिक अध्ययन, इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र, कला, कार्यानुभव, समाज सेवा, शारीरिक शिक्षा, नैतिक एवं आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा इत्यादि सम्मिलित किया जाए।
  • निम्न माध्यमिक शिक्षा में तीन भाषाएं मातृभाषा, प्रादेशिक भाषा, अंग्रेजी या हिंदी, गणित, विज्ञान, इतिहास, भूगोल, नागरिक शास्त्र, कला, कार्यानुभव, समाज, सेवा, शारीरिक शिक्षा, नैतिक एवं आध्यात्मिक शिक्षा सम्मिलित किया जाए।
  • उच्चतर माध्यमिक शिक्षा कोई दो भाषा एवं तीन वैकल्पिक विषय जैसे- इतिहास, भूगोल, अर्थशास्त्र, तर्क शास्त्र, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र, जीव विज्ञान, कार्यानुभव, समाज सेवा, कला, शिल्प, नैतिकता तथा आध्यात्मिक मूल्यों की शिक्षा इत्यादि शामिल किया जाए।

विद्यालय प्रशासन का निरीक्षण

भारत में विद्यालय प्रशासन व निरीक्षण संबंधी कार्यक्रमों को प्रभावी बनाने के लिए आयोग ने निम्नलिखित सुझाव प्रस्तुत किए हैं:-

  • यदि कोई विद्यालय सही ढंग से संचालित नहीं किया जा रहा है, तो राज्य सरकार को उसका संचालन अपने हाथ में लेना चाहिए।
  • व्यक्तिगत विद्यालयों की प्रबंध समितियों में शिक्षा विभाग के प्रतिनिधियों को सम्मानित किया जाए।
  • प्रशासन एवं निरीक्षण दोनों को अलग किया जाए इसमें प्रशासन कार्य जिला विद्यालय परिषद एवं निरीक्षण कार्य जिला विद्यालय अधिकारी को सौंपा जाए। जिससे कि यह दोनों परस्पर सहयोग कर सकें।
  • प्रत्येक राज्य में राज्य विद्यालय शिक्षा परिषद की स्थापना की जाए।

शिक्षण विधियां निर्देशन एवं मूल्यांकन

इस के संदर्भ में आयोग ने निम्नलिखित सिफारिश प्रस्तुत की है :-

  • विद्यालयों में प्रयुक्त होने वाले शिक्षण विधियों और अधिक लचीला एवं गत्यात्मक बनाया जाए।
  • शिक्षा में गतिशीलता लाने के लिए शिक्षकों में सृजनात्मक गुणों का विकास किया जाए।
  • पाठ्य पुस्तकों के लेखक एवं उनके निर्माण में राष्ट्र के प्रतिभाशाली शिक्षकों को प्रोत्साहित किया जाए।
  • प्रत्येक राज्य में पाठ्यक्रम निर्माण समिति का आयोजन किया जाए।
  • मार्ग निर्देशन की प्रक्रिया का प्रारंभ प्राथमिक कक्षा के बालकों से किया जाए।
  • प्राथमिक शिक्षकों को निर्देशन कार्यक्रम संचालन के लिए प्रशिक्षित किया जाए।
  • माध्यमिक विद्यालयों के लिए एक सलाहकार की नियुक्ति की जाए।
  • जिला स्तर पर निर्देशन ब्यूरो की स्थापना की जाए।
  • प्राथमिक स्तर पर मूल्यांकन द्वारा मूलभूत कुशलता में विद्यार्थियों की उपलब्धि को सुधारा जाए।
  • उच्चतर प्राथमिक स्तर पर विद्यार्थियों की उपलब्धि की जांच के लिए मौलिक एवं निदानात्मक परीक्षाओं का प्रयोग किया जाए।
  • बाहरी परीक्षाएं वस्तुनिष्ठ प्रश्न पत्रों के माध्यम से आयोजित की जाए तथा आंतरिक परीक्षा व्यापक स्तर पर आयोजित किया जाए।

निर्देशों का माध्यम

कोठारी आयोग ने इस बात पर जोर दिया है कि विद्यालय तथा महाविद्यालय स्तर पर शिक्षा निर्देशन का माध्यम राजकीय भाषा में होना चाहिए। इसके साथ साथ अंतरराष्ट्रीय जरूरतों को ध्यान में रखते हुए अंग्रेजी भाषा को विद्यालय स्तर से ही बढ़ावा देना चाहिए।

भाषाओं का अध्ययन

आयोग के अनुसार त्रिभाषा सूत्र को लागू करना चाहिए जो निम्नलिखित है:-

1. मातृभाषा या क्षेत्रीय भाषा।
2. केंद्र की सहकारी भाषा।
3. आधुनिक भारतीय यूरोपीय भाषा।

आज के इस लेख में आपने जाना कि- कोठारी आयोग क्या है?

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