निगमन विधि क्या है?
निगमन विधि का अर्थ :-
निगमन विधि शिक्षण की निगमन विधि उसी को कहते हैं जिसमें सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ा जाता है। इस तरह हम कर सकते हैं निगमन विधि आगमन विधि के बिल्कुल विपरीत है। निगमन विधि का प्रयोग करते समय शिक्षक बालकों के सामने पहले किसी सामान्य नियम को रखते हैं, तत्पश्चात उस नियम की सत्यता को प्रमाणित करने हेतु विभिन्न उदाहरणों का प्रयोग करते हैं। कहने का अभिप्राय है कि निगमन विधि में विभिन्न प्रयोग एवं उदाहरणों के माध्यम से किसी सामान्य नियम की सत्यता को सिद्ध कराया जाता है।
उदाहरण के लिए विज्ञान की शिक्षा देते समय बालक से किसी भी सामान्य नियम को कई प्रयोगों द्वारा सिद्ध कराया जा सकता है। जिस तरह इस विधि का प्रयोग विज्ञान के शिक्षण में किया जा सकता है इसी तरह का प्रयोग व्याकरण, अंकगणित एवं ज्यामिति आदि अन्य विषयों के शिक्षण में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
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निगमन विधि क्या है?
निगमन विधि के सोपान होते हैं :-
(1.) सामान्य नियमों का प्रस्तुतीकरण
इस तूफान में शिक्षक बालकों के सामने सामान्य नियमों को कर्म पूर्वक प्रस्तुत करता है।
(2.) नियमों के अंदर संबंध निरूपण
इस सोपान में विश्लेषण की प्रक्रिया होती है, शिक्षा पेश किए हुए नियमों के अंदर तर्कयुक्त संबंधों का निरूपण करता है।
(3.) उदाहरणों द्वारा परीक्षण
इस सोपान में सामान्य नियमों की परीक्षा करने हेतु विभिन्न उदाहरणों को देना जाता है। दूसरे शब्दों में, सामान्य नियमों का विभिन्न परिस्थितियों में प्रयोग किया जाता है जिससे सत्यता का ठीक परीक्षण हो जाए।
निगमन विधि क्या है?
निगमन विधि के गुण :-
(1.)छोटे बालको के लिए बहुत लाभदायक है। इसके प्रयोग द्वारा बालक ज्ञान का प्रयोग करना सफलतापूर्वक सीख जाते हैं।
(2.) यह विधि सभी विषय को पढ़ाने हेतु उपयुक्त है।
(3.)निगमन विधि द्वारा कक्षा के सभी बालकों को एक ही समय में पढ़ाया जा सकता है।
(4. )निगमन विधि द्वारा नियमों की जानकारी प्राप्त करते हैं उन्हें अशुद्ध नियमों को जानने का कोई अवसर नहीं मिलता।
(5.) किस विधि के प्रयोग से समय एवं शक्ति दोनों की बचत होती है।
(6.) निगमन विधि में शिक्षक बने बनाए नियमों को बालकों के सामने प्रस्तुत करता है। इस तरह निगमन विधि शिक्षक का कार्य बहुत सरल करता है।
निगमन विधि के दोष
- निगमन विधि आगमन विधि से बिल्कुल उल्टी है। इस विधि में सामान्य से विशिष्ट की तरफ अज्ञात से ज्ञात की ओर एवं अमूर्त से मूर्त की ओर चलना पड़ता है। इस दृष्टि से यह विधि शिक्षण की अमनोवैज्ञानिक विधि है।
- इस विधि से बालकों को अपने निजी प्रयत्नों द्वारा ज्ञान को खोजने का कोई अवसर नहीं मिलता है।
- निगमन विधि में बालकों को शिक्षक द्वारा बनाया हुआ नियम या शिक्षक द्वारा दिया गया ज्ञान हर हालात में स्वीकार करना पड़ता है।
- यह विधि नियमों या सिद्धांतों को बलपूर्वक जुबानी रटने हेतु बाध्य करती है।
- निगमन विधि द्वारा काटा हुआ ज्ञान बालोंको के मस्तिष्क का अस्थाई अंग नहीं बनता।
- छोटे छोटे बालकों की रचनात्मक प्रवृत्ति होती है। अतः वे वस्तुओं को बनाने बिगाड़ने या तोड़ने फोड़ने में रुचि लेते हैं। लेकिन इन निगमन विधि सिर्फ अमूर्त चिंतन पर ही बल देता है। इससे बालों को की रचनात्मक शक्तियां विकसित नहीं हो पाती है।
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