आज की इस लेख में हमलोग CTET के EVS Pedagogy के Syllabus के अंतर्गत आने वाले Topic पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके” (Teaching Methods of Environmental Studies) के बारे में अध्ययन करेंगे।

पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के अनेकों विधि है जिसकी सहायता से शिक्षक विद्यार्थियों को पर्यावरण अध्ययन के शिक्षा देते हैं। तो चलिए हम लोग उन विधियों के बारे में जानते हैं जिसकी सहायता से एक शिक्षक पर्यावरण अध्ययन का शिक्षण कराते हैं।

पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके (Teaching Methods of Environmental Studies) 

➤ विश्लेषण विधि 

पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके

विश्लेषण विधि(Analysis method) एक शिक्षण विधि है जिसमें किसी समस्या को पहले छोटे-छोटे भागों में विभाजित किया जाता है उसके बाद समस्या के बारे में अध्ययन किया जाता है फिर उसके निष्कर्ष पर पहुंचा जाता है इस प्रकार के शिक्षण विधि को विश्लेषण विधि कहते हैं इस विधि से समस्या का हल निकलने पहले समस्या के बारे में जानते हैं, फिर समस्या के हल के लिए उपयुक्त विधि को चुनते हैं तथा अंत में में समस्या का हल सामने आता है

➤ विश्लेषण विधि(Analysis method) के गुण तथा लाभ

  • इस विधि में छात्रों को खोज करने का अवसर मिलता है
  • इस विधि को क्रियाशील विधि माना जाता है
  • इस विधि द्वारा प्राप्त होने वाले ज्ञान हमेशा स्थाई होता है
  • इस विधि में छात्र हमेशा क्रियाशील रहते हैं

➤ विश्लेषण विधि के दोष तथा हानि

  • इस विधि द्वारा समस्या के निष्कर्ष तक पहुंचने में अधिक समय लगता है
  • इस विधि का उपयोग प्राथमिक स्तर के कक्षा के लिए करना कठिन होता है
  • इस विधि द्वारा छात्र धीरे-धीरे ज्ञान का अर्जन करता है
  • विश्लेषण विधि एक कठिन विधि होने के कारण इससे बालक में नीरसता की भावना उत्पन्न होती है
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➤ संश्लेषण विधि 

पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके

संश्लेषण विधि (Synthesis Method) एक शिक्षण विधि है इस विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर जाते हैं अर्थात पहले से ज्ञात तथ्य एवं सूत्रों की सहायता से नए तथ्यों या समस्या के हल करने की शिक्षण विधि को संश्लेषण विधि करते हैं इस विधि में समस्या के हल करने की विधि पहले से मालूम रहता है और ज्ञात विधि के आधार पर समस्या का हल निकालते हैं

संश्लेषण विधि ज्ञात से अज्ञात सूत्रों के आधार पर काम करता है

➤ संश्लेषण विधि के गुण तथा लाभ

  • यह विधि बहुत ही सरल विधि होती है जो मंद बुद्धि छात्रों के लिए काफी उपयोगी है
  • इस विधि को सीखने तथा इस विधि के द्वारा समस्या के हल तक पहुंचने ने काफी कम समय लगता है
  • संश्लेषण विधि प्राथमिक कक्षाओं के लिए काफी उपयोगी विधि है

➤ संश्लेषण विधि के दोष तथा हानि

  • इस विधि से छात्रों में तर्क तथा निर्णय सक्ति का विकास नहीं हो पाता है
  • संश्लेषण विधि बालकों को खोज करने का अवसर नहीं प्रदान करता है
  • प्रतिभाशाली बालकों के लिए यह विधि नुकसानदायक है
  • मनोवैज्ञानिकों का मानना है कि इस विधि को प्राथमिक स्तर की कक्षा तक ही सीमित रखना चाहिए

पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके (Teaching Methods of Environmental Studies) 

आगमन विधि

आगमन विधि, उस विधि को को कहते है, जिसमें विशेष तथ्य एवं घटनाओं के लक्षण एवं विश्लेषण द्वारा सामान्य नियम व सिद्धांतों का निर्माण किया जाता है। आगमन विधि ज्ञात से अज्ञात की ओर, विशिष्ट से सामान्य की ओर एवं मूर्त से अमूर्त की ओर शिक्षण सूत्रों का प्रयोग किया जाता हैका प्रयोग किया जाता है।

आगमन विधि के गुण 

1. आगमन विधि में ज्ञात से अज्ञात की ओर, सरल से जटिल और की ओर चलकर मूर्त उदाहरणों द्वारा बालको से समाने नियम निकलवाने जाते हैं। इससे बालक सक्रिय एवं प्रसन्न रहते हैं तथा ज्ञानार्जन के लिए उनकी रुचि लगातार बनी रहती है।

2. इस विधि में बालक उदाहरणों का विश्लेषण करते हुए सामान्य नियम समय निकाल लेते हैं।

3. आगमन विधि द्वारा ज्ञान प्राप्त करते हुए बालक को सीखने के हरा स्तर को पार करना पड़ता है इससे शिक्षा प्रभावशाली बन जाता है।

4. इस विधि द्वारा प्राप्त किया हुआ ज्ञान संग बालकों का खोजा हुआ ज्ञान होता है ऐसा ज्ञान उनके मस्तिष्क का स्थाई अंग बन जाता है

5. आगमन विधि द्वारा बालकों को नवीन ज्ञान के खोजने का प्रशिक्षण मिलता है।

6. यह भी ठीक है भारी कि जीवन हेतु बहुत लाभप्रद है अतरिया विधि एक प्राकृतिक विधि है।

आगमन विधि के दोष

  • आगमन विधि द्वारा सीखने में शक्ति एवं समय दोनों ज्यादा लगते हैं।
  • यह विधि द्वारा सीखते हुए अगर कोई बालक किसी अशुद्ध सामान्य नियम की तरफ पहुंच जाए तो उन्हें सत्य की तरफ लाने में कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।
  • यह विधि छोटे बालकों हेतु उपयुक्त नहीं है।इसका प्रयोग सिर्फ बड़े तथा वह भी प्रभावशाली बालक ही कर सकते हैं।
  • आगमन विधि द्वारा सिर्फ सामान्य नियमों की खोज की जा सकती है अतः इस विधि द्वारा हर विषय की शिक्षा नहीं दी जा सकती।
  • यह विधि स्वयं में अपूर्ण है। इसके द्वारा खोजे हुए सत्य की परख करने के लिए निगमन विधि जरूरी है।

पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके (Teaching Methods of Environmental Studies) 

निगमन विधि

निगमन विधि शिक्षण की निगमन विधि उसी को कहते हैं जिसमें सामान्य से विशिष्ट की ओर बढ़ा जाता है। इस तरह हम कर सकते हैं निगमन विधि आगमन विधि के बिल्कुल विपरीत है। निगमन विधि का प्रयोग करते समय शिक्षक बालकों के सामने पहले किसी सामान्य नियम  को रखते हैं, तत्पश्चात उस नियम की सत्यता को प्रमाणित करने हेतु विभिन्न उदाहरणों का प्रयोग करते हैं। कहने का अभिप्राय है कि निगमन विधि में विभिन्न प्रयोग एवं उदाहरणों के माध्यम से किसी सामान्य नियम की सत्यता को सिद्ध कराया जाता है।

उदाहरण के लिए विज्ञान की शिक्षा देते समय बालक से किसी भी सामान्य नियम को कई प्रयोगों द्वारा सिद्ध कराया जा सकता है। जिस तरह इस विधि का प्रयोग विज्ञान के शिक्षण में किया जा सकता है इसी तरह का प्रयोग व्याकरण, अंकगणित एवं ज्यामिति आदि अन्य विषयों के शिक्षण में भी सफलतापूर्वक किया जा सकता है।

निगमन विधि के गुण 

(1.)छोटे बालको के लिए बहुत लाभदायक है। इसके प्रयोग द्वारा बालक ज्ञान का प्रयोग करना सफलतापूर्वक सीख जाते हैं।
(2.) यह विधि सभी विषय को पढ़ाने हेतु उपयुक्त है।
(3.)निगमन विधि द्वारा कक्षा के सभी बालकों को एक ही समय में पढ़ाया जा सकता है।
(4. )निगमन विधि द्वारा नियमों की जानकारी प्राप्त करते हैं उन्हें अशुद्ध नियमों को जानने का कोई अवसर नहीं मिलता।
(5.) किस विधि के प्रयोग से समय एवं शक्ति दोनों की बचत होती है।
(6.) निगमन विधि में शिक्षक बने बनाए नियमों को बालकों के सामने प्रस्तुत करता है। इस तरह निगमन विधि शिक्षक का कार्य बहुत सरल करता है।

निगमन विधि के दोष

  • निगमन विधि आगमन विधि से बिल्कुल उल्टी है। इस विधि में सामान्य से विशिष्ट की तरफ अज्ञात से ज्ञात की ओर एवं अमूर्त से मूर्त की ओर चलना पड़ता है। इस दृष्टि से यह विधि शिक्षण की अमनोवैज्ञानिक विधि है।
  • इस विधि से बालकों को अपने निजी प्रयत्नों द्वारा ज्ञान को खोजने का कोई अवसर नहीं मिलता है।
  • निगमन विधि में बालकों को शिक्षक द्वारा बनाया हुआ नियम या शिक्षक द्वारा दिया गया ज्ञान हर हालात में स्वीकार करना पड़ता है।
  • यह विधि नियमों या सिद्धांतों को बलपूर्वक जुबानी रटने हेतु बाध्य करती है।
  • निगमन विधि द्वारा काटा हुआ ज्ञान बालोंको के मस्तिष्क का अस्थाई अंग नहीं बनता।
  • छोटे छोटे बालकों की रचनात्मक प्रवृत्ति होती है। अतः वे वस्तुओं को बनाने बिगाड़ने या तोड़ने फोड़ने में रुचि लेते हैं। लेकिन इन निगमन विधि सिर्फ अमूर्त चिंतन पर ही बल देता है। इससे बालों को की रचनात्मक शक्तियां विकसित नहीं हो पाती है।

पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके (Teaching Methods of Environmental Studies) 

अन्वेषण विधि

अन्वेषण विधि को ह्यूरिस्टिक विधि भी कहते हैं।

(Heuristic Method) ह्यूरिस्टिक विधि एक शिक्षण विधि है। ह्यूरिस्टिक (Heuristic) शब्द यूनानी भाषा के Heurisco से बना है जिसका तात्पर्य है ” मैं स्वयं खोज करता हूं ” इस प्रकार स्पष्ट है कि ह्यूरिस्टिक विधि स्वयं खोज करके या अपने आप सीखने की विधि है।

अन्वेषण विधि “खोज” करने पर आधारित एक अधिगम विधि है?

 

अन्वेषण विधि के गुण

  • गणितीय शिक्षण में यह विधि काफी उपयोगी साबित होता है क्योंकि यह छात्रों में मनोवैज्ञानिक भावना और वैज्ञानिक दृष्टिकोण का निर्माण करती है।
  • यह विधि तर्क, निर्णय, कल्पना, चिंतन आदि का उपयुक्त अवसर प्रदान करता है जिससे बालक के मानसिक विकास की प्रक्रिया में तीव्रता बनी रहती है।
  • अन्वेषण विधि छात्र को ज्ञान की खोज करने की स्थिति में रखती है।
  • यह विधि छात्रों को स्वयं गणित कार्य करने हेतु प्रेरित करती है और उसमें स्वतंत्र अध्ययन और स्वाध्याय की आदत का निर्माण करती है।
  • अन्वेषण विधि करके सीखने पर आधारित विधि है।

अन्वेषण विधि के दोष

  • यह विधि केवल और साधारण बुद्धि वाले छात्रों के गणित शिक्षण के लिए उपयोगी है,क्योंकि प्रतिभाशाली बालक ही गणित के क्षेत्र में अन्वेषण करने में समर्थ होते हैं,साधारण बुद्धि वाले छात्र स्वयं अन्वेषण नहीं कर पाते हैं।
  • गणित शिक्षण की यह विधि छात्रों को गलत नियम, निष्कर्ष अथवा सिद्धांतों पर पहुंचा सकती है,क्योंकि उनका मस्तिष्क इतना परिपक्व और विकसित नहीं होता है कि वे अपनी गलती को समझ सके।
  • निम्न कक्षाओं में गणित शिक्षण में इस विधि का उपयोग नहीं किया जा सकता है क्योंकि निम्न कक्षाओं के छात्र स्वयं अन्वेषण करने में असमर्थ होते हैं।
  • इस विधि में आगमन और वस्तु पूरक शिक्षण के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार के शिक्षण का प्रयोग नहीं किया जा सकता। इसका परिणाम यह होता है कि इसमें शिक्षण के समस्त पहलुओं का समावेश नहीं हो पाता है। यह भी इस विधि का दोष है।
  • चुकिं यह विधि स्वयं करके सीखने पर आधारित विधि है इसीलिए इस विधि से शिक्षण कार्य में अधिक समय लगता है।

आज के इस लेख में हमलोगों ने पर्यावरण अध्ययन शिक्षण के तरीके के बारे में पढ़ा। हमलोगो ने विभिन्न विधियों के बारे में अध्ययन किया तथा उस विधि के गुण एवं दोष को जाना।

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