इस लेख के माध्यम से आप CTET EVS शिक्षाशास्त्र के पाठ -1 के बारे में अध्ययन करेंगे। आप जानेंगे कि पर्यावरण अध्ययन की अवधारणा एवं क्षेत्र (Concept and Scope of Environmental Studies), क्या है?
पर्यावरण का अर्थ
पर्यावरण शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है परि तथा आवरण।
परि का अर्थ होता है- चारों तरफ तथा आवरण का अर्थ घेरा होता है।
अर्थात हम कह सकते हैं कि वे सभी वस्तुएं जिससे हम चारों तरफ से घिरे होते हैं पर्यावरण कहलाता है।
पर्यावरण उन सभी परिस्थितियों का मिश्रण है जो जीवो के उसकी प्रजाति तथा उसके विकास एवं उसके जीवन तथा मृत्यु को प्रभावित करते हैं।
पर्यावरण की परिभाषा
हमारे आसपास की वे सभी वस्तुओं में जिनसे हम गिरे हुए होते हैं पर्यावरण कहलाती है।
पर्यावरण के घटक
पर्यावरण की मुख्य रूप से 2 घटक होते हैं
जैविक घटक तथा अजैविक घटक
अजैविक घटक (Abiotic Components) क्या है?
अजैविक घटक के अंतर्गत भौतिक तथा रासायनिक पदार्थ आते हैं जो सजीवों को प्रभावित करते हैं।
जैसे :- तापमान, जल, नमी, प्रकाश, मिट्टी, गैस, खनिज तत्व, इत्यादि अजैविक घटक के अंतर्गत आते हैं।
जैविक घटक (Biotic Components) क्या है?
पर्यावरण के जैविक घटक के अंतर्गत सभी जीवधारी आते हैं जो आपस में अजैविक घटकों से अंतः क्रियात्मक संबंध रखते हैं।
जैसे :- पेड़-पौधे, पशु-पक्षी, कीट, सूक्ष्मजीव, मनुष्य इत्यादि सभी पर्यावरण के जैविक घटक हैं।
पर्यावरण शिक्षण का महत्व
- पर्यावरण शिक्षण हमें पर्यावरण और मनुष्य की क्रियाओं के बीच के संबंध को दर्शाता है।
- पर्यावरण शिक्षण से हमें यह ज्ञात होता है कि पर्यावरण के घटक हमारे लिए क्यों आवश्यक है।
- पर्यावरण शिक्षण नागरिक चेतना को बढ़ाती है।
- पर्यावरण शिक्षण के द्वारा हम पर्यावरण को संतुलित रख सकते हैं।
- पर्यावरण शिक्षण हमें पर्यावरण की समस्याओं उनकी निदान और पर्यावरण का संरक्षण करना सिखाता है।
- पर्यावरण शिक्षण हमें प्रदूषण एवं उससे उत्पन्न जनित दुष्प्रभावों के बारे में बताता है।
पर्यावरण शिक्षण के उद्देश्य
- पर्यावरण के प्रति विद्यार्थी में जिज्ञासा, रुचि, कल्पना एवं स्मरण शक्ति का विकास कराना चाहिए।
- आसपास के पर्यावरण से विद्यार्थियों को परिचित करवाना चाहिए।
- प्राकृतिक विविधता एवं विविधता के कारण को बताना चाहिए।
- विद्यार्थियों को पर्यावरण के प्रति जागरूक एवं संवेदनशील बनाना चाहिए।
- मनुष्य के जीवन पर पड़ने वाले पर्यावरणीय प्रभावों को बतानी चाहिए।
- कक्षा के ज्ञान को बालक के बाहरी जीवन से जोड़ा जाना चाहिए।
- पर्यावरण प्रदूषण एवं पर्यावरण संरक्षण के विषय में बच्चों को जानकारी देना चाहिए।
- पर्यावरण शिक्षण के माध्यम से बालकों में विभिन्न प्रकार के कौशलों का विकास करवाना चाहिए। जैसे:– अवलोकन करना, रिकॉर्डिंग करना, वस्तुओं का विभेद करना, तुलना करना, वर्गीकरण करना, सर्वेक्षण करना, पोर्टफोलियो का निर्माण करना, इत्यादि।
- बालकों को रटकर सीखने पर नहीं बल्कि स्वयं करके सीखने पर बल दिया जाना चाहिए।
इस लेख के माध्यम से आपने पर्यावरण अध्ययन की अवधारणा एवं क्षेत्र के बारे में अध्ययन किया।
मैं उम्मीद करता हूं कि यह लेख आपको पसंद आई होगी तथा यह आपके लिए उपयोगी भी होगा। इसी तरह के अन्य लेख को पढ़ने के लिए पढ़ते रहिए…..RKRSTUDY.NET
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