Sandhi kise kate hain
आज हम लोग यह जानेंगे कि {Sandhi kise kate hain} संधि किसे कहते हैं, संधि का सामान्य अर्थ क्या होता है तथा संधि कितने प्रकार के होते हैं तो चलिए जानते हैं कि संधि किसे कहते हैं?
संधि का अर्थ
संधि का सामान्य अर्थ “मेल” होता है। हिंदी में दो अक्षर मिलने से तीसरे शब्द की रचना होती है। संधि निरर्थक अक्षर को मिलाकर सार्थक शब्द बनाता है। संधि में शब्द का छोटा रूप होता है।
जैसे:- हिम + आलय = हिमालय।
उदाहरण में “हिम”कोई सार्थक अर्थ नहीं है और ना ही “आलय” का कोई सार्थक अर्थ है, लेकिन इन अक्षरों से मिलकर “हिमालय” शब्द बना है जो सार्थक शब्द है।
संधि की परिभाषा
दो वर्णो या ध्वनियों के मिलने से होने वाले विकार (परिवर्तन) को संधि कहते हैं।
जैसे :- सुर + इन्द्र = सुरेंद्र ।
विद्या + आलय = विद्यालय ।
संधि के प्रकार
संधि तीन प्रकार के होते हैं :-
1. स्वर संधि :-
स्वर्ण वर्ण के साथ स्वर्ण का मेल होने से जो विकार उत्पन्न होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं।
जैसे :- परम + अर्थ : परमार्थ (अ + अ = आ)।
गिरि + ईश : गिरीश (इ + ई = ई।
स्वर संधि के प्रकार
स्वर संधि के मुख्यतः पांच भेद होते हैं:
1. दीर्घ संधि
2. गुण संधि
3. वृद्धि संधि
4. यण संधि
5. अयादी संधि
1. दीर्घ संधि :-
ह्रस्व या दीर्घ स्वरों को मिलने से उसके स्थान में स्वर्ण दीर्घ स्वर हो जाता है। वर्णो का संयोग ह्रस्व + ह्रस्व हो या ह्रस्व + दीर्घ दीर्घ संधि कहलाता है।
जैसे :-
विद्या + अभ्यास : विद्याभ्यास (आ + अ = आ)।
परम + अर्थ : परमार्थ (अ + अ = आ)।
कवि + ईश्वर : कवीश्वर (इ + ई = ई)।
गिरि + ईश : गिरीश (इ + ई = ई)।
वधु + उत्सव : वधूत्सव (उ + उ = ऊ)।
2.गुण संधि :-
जब ‘अ ‘ अथवा ‘आ ‘ से ‘ई ‘, ‘ इ ‘, ‘ उ ‘, ‘ ऊ ‘, व ‘ ऋ ‘ की संधि होती है, तो उससे क्रमशः ‘ ए ‘, ‘ओ ‘ , और ‘ अर ‘ विकार उत्पन्न होते हैं हैं, गुण संधि कहलाते हैं ।
जैसे :-
महा + उत्सव : महोत्सव (आ + उ = ओ)।
आत्मा + उत्सर्ग : आत्मोत्सर्ग (आ + उ = ओ)।
धन + उपार्जन : धनोपार्जन (अ + उ = ओ)।
सुर + इंद्र : सुरेन्द्र (अ + इ = ए)।
महा + ऋषि : महर्षि (आ + ऋ = अर)।
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3.वृद्धि संधि :-
जब ‘अ ‘ या ‘आ ‘ के आगे ‘ए ‘ या ‘ ऐ ‘आता है,तो दोनों का ‘ ऐ ‘हो जाता है। ऐसी प्रकार ‘ अ ‘ या ‘ आ ‘ के आगे ‘ ओ ‘ आता है, तो दोनों का ‘ औ ‘ या ‘ ओ ‘हो जाता है,ऐसे विर्धि संधि कहते हैं।
जैसे :-
महा + ऐश्वर्य : महैश्वर्य (आ + ऐ = ऐ)।
महा + ओजस्वी : महौजस्वी (आ + ओ = औ)।
परम + औषध : परमौषध (अ + औ = औ)।
जल + ओघ : जलौघ (अ + ओ = औ)।
महा + औषध : महौषद (आ + औ = औ)।
4. यण संधि :-
जब इ ,ई ,उ ,ऊ ,ऋ के आगे कोई भिन्न स्वर आता है ,तो ये क्रमशः य ,व, र, ल में परिवर्तित हो जाता है। इस परिवर्तन को यण संधि कहते है।
जैसे :-
अति + अधिक : अत्यधिक (इ + अ = य)।
प्रति + अक्ष : प्रत्यक्ष (इ + अ = य)।
प्रति + आघात : प्रत्याघात (इ + आ = या)।
अति + अंत : अत्यंत (इ + अ = य)।
अति + आवश्यक : अत्यावश्यक (इ + आ = या)।
5. अयादि संधि :-
जब ए ,ऐ ,ओ ,और औ के बाद कोई भिन्न स्वर आता है तो ए का अय , ऐ का आय ,ओ का अव और ओ का आव हो जाता है, अयादि संधि कहलाता है।
जैसे :-
श्री + अन : श्रवण।
पौ + अक : पावक।
पौ + अन : पावन।
नै + अक : नायक।
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2. व्यंजन संधि :-
व्यंजन वर्ण के साथ स्वर या व्यंजन वर्ण के मेल से उत्पन्न संधि को व्यंजन संधि करते हैं।
जैसे :- दिक् + अम्बर = दिगम्बर।
अभी + सेक = अभिषेक।
दिक् + गज = दिग्गज।
जगत + ईश = जगदीश।
3. विसर्ग संधि :-
विसर्ग के साथ स्वर या व्यंजन वर्ण के सहयोग से जो विकार उत्पन्न होता है उसे विसर्ग संधि होते हैं।
जैसे :-
अंतः + करण : अन्तकरण।
अंतः + गत : अंतर्गत।
अंतः + ध्यान : अंतर्ध्यान।
अंतः + राष्ट्रीय : अंतर्राष्ट्रीय।