संज्ञान किसे कहते हैं?

मनोवैज्ञानिकों के अनुसार :- संज्ञान का अर्थ “समझ” या “ज्ञान” होता है। शिक्षण के प्रक्रियाओं में अधिगम का मुख्य केंद्र संज्ञानात्मक क्षेत्र होता है। इस क्षेत्र में अधिगम उन मानसिक क्रियाओं से जुड़ा होता है जिनमें पर्यावरण से सूचना प्राप्त की जाती है। इस प्रकार इस क्षेत्र में अनेक क्रियाएं होती है, जो सूचना प्राप्ति के प्रारंभ होकर शिक्षार्थी के मस्तिष्क तक चलती रहती है यह सूचनाएं सुनने या देखने के रूप में होती है।

संज्ञान किसे कहते हैं?

(Cognition) संज्ञान’ शब्द का अर्थ है ‘जानना’ या ‘समझना’। यह एक ऐसी बौद्धिक प्रक्रिया है जिसमें विचारों के द्वारा ज्ञान प्राप्त किया जाता है। संज्ञानात्मक विकास शब्द का प्रयोग मानसिक विकास के व्यापक अर्थ में किया जाता है जिसमें बुद्धि के अतिरिक्त सूचना का प्रत्यक्षीकरण (perception), पहचान (recognition), प्रत्याह्वान (remembering) और व्याख्या आता है। अतः संज्ञान में मानव की विभिन्न मानसिक गतिविधियों का समन्वय होता है। मनोवैज्ञानिक ‘संज्ञान’ का प्रयोग ज्ञान प्राप्त करने की प्रक्रिया के रूप में करते हैं।

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संज्ञान के संदर्भ में महान मनोवैज्ञानिकों का विचार

स्टाट के अनुसार, संज्ञानात्मक संरचना बाहरी वातावरण में विचारपूर्वक, प्रभावपूर्ण ढंग से तथा सुविधा के अनुसार कार्य करने की क्षमता है।

हिलगार्ड के अनुसार – किसी व्यक्ति ने स्वयंअपने बारे में तथा अपने पर्यावरण के बारे में विचार, ज्ञान, व्याख्या, समझ तथा धारणा अर्जित की हो वही संज्ञान है।

संज्ञान किसे कहते हैं?

बालकों में संज्ञानात्मक विकास

संज्ञानात्मक विकास का तात्पर्य और बालकों के सीखने और सूचनाएं एकत्रित करने के तरीके से है इसमें अवधान में वृद्धि प्रत्यक्षीकरण, भाषा, चिंतन, स्मरण शक्ति और तर्क शामिल होता है

जीन पियाजे के संज्ञानात्मक विकास के सिद्धांत के अनुसार हमारे विचार और तर्क अनुकूलन के भाग हैं

संज्ञानात्मक विकास एक निश्चित अवस्थाओं के क्रम में होता है पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं का वर्णन किया है –

1.इंद्रियजनित गामक अवस्था (जन्म से 2 वर्ष तक)

2. पूर्व संक्रियात्मक अवस्था(2 से 7 वर्ष तक)

3. मूर्त संक्रियात्मक अवस्था (7 से 11 वर्ष तक)

4. अमूर्त/ औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था (11 वर्ष से आगे)

 

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