शैशवावस्था किसे कहते हैं? Shaishva Avashtha Kya hai
शैशवावस्था की परिभाषा
बालक के जन्म से लेकर 6 वर्ष तक की आयु को शैशवावस्था या शैशवकाल कहते हैं।
इस अवस्था में बालक पूर्ण रूप से पराश्रित होता है।अर्थात वह पूरी तरह दूसरे पर निर्भर रहता है। उसके विकास देखभाल के लिए माता-पिता व परिवार के सदस्य को निर्भर रहना पड़ता है।
शैशवावस्था किसे कहते हैं? Shaishva Avashtha Kya hai
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बाल विकास की विभिन्न अवस्थाओं में शैशवावस्था का अपना अलग महत्व है। एक समय था जबकि बालक शैशव काल की पूर्ण उपेक्षा की जाती थी। उसे अज्ञान का एक पुतला मात्र माना जाता है किंतु अब शिशु के लालन-पालन, शिक्षा दीक्षा पर भी बल दिया जाने लगा है।
फ्रायड के अनुसार :- व्यक्ति जो कुछ भी बनना चाहता है, प्रारंभ के 4 वर्षों में ही बन जाता है।
न्यूमैन के अनुसार :- शैशवावस्था जीवन का सबसे महत्वपूर्ण काल है।
वैलेंटाइन के अनुसार :- शैशवावस्था सीखने का आदर्श काल है।
स्टैंग की परिभाषा :– जीवन के प्रथम वर्ष में बालक अपने भावी जीवन का शिलान्यास करता है।यद्यपि उसमें परिवर्तन हो सकता है,पर प्रारम्भिक प्रवृत्तियाँ और प्रतिमान सदैव बने रहते हैं।
एडलर के अनुसार :- बालक के जन्म के कुछ माह बाद ही यह निश्चित किया जा सकता है।कि जीवन में उसका क्या स्थान है।
क्रो एंड क्रो के अनुसार :- बीसवीं शताब्दी को बालक की शताब्दी कहा जाता है।
गुडएनफ के अनुसार :- व्यक्ति का जितना भी मानसिक विकास होता है ,उसका आधा 3 वर्ष की आयु तक हो जाता है।
शैशवावस्था में बालक के विकास की विशेषताएं
- इस अवस्था में शिशु का सर्वांगीण विकास उनके गामक विकास पर अधिक अवलंबित होता है।
- गामक विकास का तात्पर्य शिशु की शक्ति और मांसपेशियों के विकास से तथा हाथ पैरों के समुचित प्रयोग की क्षमता आ जाने से है।
- शिशु का शारीरिक विकास तेजी से होता है। प्रथम वर्ष में उसकी ऊंचाई 4 से 5 इंच तक बढ़ जाती है।इसी प्रकार पहले 2 वर्षों में उसकी बांहें दुगुनी और टांगे डेढ़ गुनी हो जाती है।
- शिशु जन्म लेने के बाद काफी समय तक माता पिता और परिवार के सदस्य पर निर्भर रहता है।
- शैशवावस्था में शिशु तेजी से सीखता है और इस अवस्था में उसकी मानसिक विकास की प्रक्रिया भी तीव्रता से चलती है।
- शैशवावस्था कल्पनाकाल होता है। 3 से 4 वर्ष के शिशु अर्द्ध स्वपनों की दुनिया में रहते हैं।
- शैशवावस्था में बच्चों में अनुकरण की प्रवृत्ति विशेष रूप से पाई जाती है।वह अपने से बड़ों का अनुकरण करने में विशेष आनंद का अनुभव करता है।
शैशवावस्था किसे कहते हैं? Shaishva Avashtha
शैशवावस्था की विशेषताएं एवं गुण
- इस अवस्था में बच्चे का संपूर्ण व्यवहार मूल प्रवृत्तियों पर आधारित होती है।इसीलिए जब उसे भूख लगती है या उसकी इच्छा के विरुद्ध कोई बात होती है तो वह रोने लगता है और क्रोधित होने पर चीजों की तोड़फोड़ करने लगता है।
- शिशु में आत्मा प्रेम की भावना प्रबल रूप से पाई जाती है और वह अपने माता-पिता द्वारा किसी दूसरे बच्चों से प्रेम करने की बात को पसंद नहीं करते हैं।
- शैशवावस्था में जिज्ञासा प्रवृत्ति भी अत्यधिक होती है। बच्चे अपने आसपास के वातावरण की प्रत्येक वस्तु को समझने का प्रयास करते हैं। शिशु का मानसिक विकास ज्ञानेंद्रियों के माध्यम से होता है।
- इस अवस्था में शिशु अपने मुंह से अनेक प्रकार की दवाइयां निकालता है।पहले स्वर व्यंजन ध्वनियों का उच्चारण करता है। वह दा-दा, मा-मा, ना-ना इत्यादि ध्वनियां निकालता है। वह बलबलाता और स्वयं बात का आनंद लेता रहता है।
- शिशु कुछ ना कुछ रचना करने में आनंद लेता है। वह कुछ बनाता तथा बिगड़ता रहता है।
- शैशवावस्था में शिशु प्रमुख रूप से चार प्रकार के संवेगो का प्रदर्शन करता है –
भय, क्रोध, प्रेम और पीड़ा। - इस अवस्था में शिशु विभिन्न प्रकार की वस्तुओं से खेलना बहुत पसंद करता है। वहां अकेले खेलने में विशेष प्रकार का आनंद प्राप्त करता है।
आज हमलोगों ने जाना की शैशवावस्था किसे कहते हैं, शैशवावस्था की विशेषताएं क्या है एवं शैशवावस्था के गुण क्या है?
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