इस लेख के माध्यम से आप शिक्षा के कार्य के बारे में अध्ययन करेंगे इस लेख में आप जानेंगे कि शिक्षा के प्रमुख कार्य कौन-कौन से हैं? शिक्षा के कितने प्रकार के कार्य होते हैं? इन सारी बातों का आप इस लेख के माध्यम से जानेंगे।
शिक्षा के कार्य निम्नलिखित है:-
1. अनुभवों का पुनर्गठन एवं पुनर्रचना:- जॉन डीवी कहते हैं कि- जीवन का प्रमुख कार्य है, प्रत्येक परिस्थिति पर अपने अनुभव धारण जीवन को समृद्ध बनाना।
2. आवश्यकता की पूर्ति :- शिक्षा के इस कार्य पर प्रकाश डालते हुए स्वामी विवेकानंद ने लिखा है कि- शिक्षा का कार्य यह पता लगाता है कि जीवन की समस्याओं को कैसे सुलझाया जाए और इसी बात की ओर संसार के आधुनिक सभ्य समाज का निर्माण पर पूर्णतया लगा हुआ है।
3. आत्मनिर्भरता की प्राप्ति:- शिक्षा प्राप्ति के मुख्य कार्य में आत्मनिर्भरता की प्राप्ति भी आती है। इस के संदर्भ में स्वामी विवेकानंद ने कहा है की केवल पुस्तक की अज्ञान से काम नहीं चलेगा। हमें उस शिक्षा की आवश्यकता है जिससे व्यक्ति अपने पैरों पर स्वयं खड़ा हो जाए।
4. उत्तम नागरिकता का निर्माण:- माध्यमिक शिक्षा आयोग के अनुसार शिक्षा को ऐसा चारित्रिक गुणों, आदतों तथा दृष्टि कोणों को विकसित करना चाहिए, जिससे नागरिक अपनी प्रजातांत्रिक नागरिकता के उत्तरदायित्व को पूरा कर सके तथा उन प्रवृत्तियों को नष्ट कर सके, जो व्यापक राष्ट्रीय तथा धर्मनिरपेक्ष दृष्टिकोण के विकसित होने में बाधक बनता हो।
5. भावी जीवन की तैयारी :- शिक्षा की कार्यों पर प्रकाश डालते हुए स्वामी विवेकानंद ने लिखा है कि- यदि कोई मनुष्य कुछ परीक्षाएं पास कर सकता है तथा अच्छे व्याख्यान दे सकता है, तो आप उसको शिक्षित समझते हैं? क्या वह शिक्षा, शिक्षा कहलाने योग्य है? जो सामान्य जन समूह को जीवन के संघर्ष के लिए अपने आपको तैयार करने में सहायता नहीं देती है।
6. भावात्मक एकता:- स्वामी दयानंद सरस्वती जी का कहना है कि- भाषा संबंध विभिनता, सांस्कृतिक कठोरता और रीति-रिवाजों तथा व्यवहारों के कारण अलगाव को दूर करना बहुत कठिन है। जब तक शिक्षा के द्वारा यह नहीं किया जाएगा तब तक पूर्ण लाभ तथा निर्दिष्ट ध्येय को प्राप्त करना कठिन है।
7. नागरिक तथा सामाजिक कर्तव्यों की भावना का समावेश:- डॉ जाकिर हुसैन ने लिखा है कि प्रजातांत्रिक समाज में यह आवश्यक है कि व्यक्ति समाज के जीवन को उत्तम बनाने के लिए नैतिक और भौतिक दोनों प्रकार से सम्मिलित उत्तरदायित्व को प्रसन्नता पूर्वक स्वीकार करें।
8. मानव प्रकृति एवं चरित्र का प्रशिक्षण:- प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री प्लेटो ने लिखा है कि- शिक्षा का अंतिम उद्देश्य तथा कार्य मानव की प्रकृति तथा चरित्र को प्रशिक्षण देना है।
इसलिए के माध्यम से आपने शिक्षा के कार्य को जाना।
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