सृजनात्मकता (Creativety) क्या है?
आज हम लोग इस अभिलेख के जरिए यह जानेंगे कि सृजनात्मकता (Creativety) क्या है? तथा सृजनात्मकता के बारे में महान मनोवैज्ञानिकों ने क्या क्या अपनी राय दी हैं तथा सृजनात्मकता का विकास करने के लिए एक शिक्षक को किन पहलुओं पर विशेष ध्यान देना चाहिए।
सृजनात्मकता की परिभाषा
सृजनात्मकता किसी व्यक्ति का वह विशेष गुण होता है जिसके द्वारा वह उन विचारों को उत्पन्न करता है जो नए हो तथा उन विचारों को वह पहले से नहीं जानता हो। जो व्यक्ति यह कार्य को करते हैं उन्हें सृजनशील व्यक्ति कहा जाता है, तथा जिन प्रतिभाओं के आधार पर वाह नई कीर्ति का आविष्कार करते हैं उसे सृजनात्मकता कहते हैं।
प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिकों द्वारा सृजनात्मकता का परिभाषा :-
स्टेगनर एवं कावौस्की के अनुसार – किसी नई वस्तु का पूर्ण या आंशिक उत्पादन सृजनात्मकता कहलता है।
ड्रेवगहल के अनुसार – सृजनात्मकता व्यक्ति की वह योग्यता है जिसके द्वारा वह उन वस्तुओँ के विचारों का उत्पादन करता है और जो अनिवार्य रूप से नए हों और जिन्हें वह पहले से न जानता हो।
सृजनात्मकता (Creativety) क्या है?
स्किनर के अनुसार – सृजनात्मक चिन्तन वह है जो नए क्षेत्र की खोज करता है, नए परीक्षण करता है, नई भविष्यवाणियां करता है और नए निष्कर्ष निकालता है।
क्रो व क्रो – सृजनात्मकता मौलिक परिणामों को अभिव्यक्त करने का मानासिक प्रक्रिया है।
गिलफोर्ड के अनुसार – सृजनात्मकता बालकों में प्रायः सामान्य गुण होते हैं, उनमें न केवल मौलिकता का गुण होता है, वरन उनमें लचीलापन, प्रवाहमयता , प्रेरण, एवं संयमता की योग्यता भी पाई जाती है।
स्टेन के अनुसार – सृजनात्मकता वह कार्य है जिसका परिणाम नवीन हो और किसी समय, किसी समूह द्वारा उपयोगी एवं संतोषजनक रूप मे स्वीकार किया जाए ।
बैरन के अनुसार – सृजनात्मक बालक पहले से विध्यमान वस्तुओं एवं तत्वों को संयुक्त कर नवीन रचना करता हैै।
सृजनात्मकता का विकास कैसे होता है?
1.तथ्यों का अधिगम – समस्या को हल करने में कौन-कौन से तथ्यों को सिखाया जाए, शिक्षा को इस बात का ध्यान रखना चाहिए
2. मौलिकता – शिक्षक को चाहिए कि वह तथ्यों के आधार पर मौलिकता के दर्शन कराएं
3. मूल्यांकन – बालकों में अपना मूल्यांकन स्वयं करने की प्रवृत्ति का विकास करना चाहिए
4. समस्या के स्तर की पहचान – समस्या के स्तर को पहचान कर उसे दूर करना चाहिए
5. जांच – बालकों में जांच करने की कुशलता का अर्जन कराया जाए
6. पाठ्य- संबंधी क्रियाएं – विद्यालय में बुलेटिन बोर्ड, एनसीसी, मैगजीन, पुस्तकालय, वाद- विवाद, खेल-कूद, स्काउटिंग आदि क्रियाओं द्वारा नवीन भावनाओं का विकास करना चाहिए
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